सोमवार, 25 जुलाई 2011

बाल कविता: मेरी माता! --संजीव 'सलिल'

बाल कविता: मेरी माता! --संजीव 'सलिल'

मेरी मैया!, मेरी माता!!

किसने मुझको जन्म दिया है?
प्राणों से बढ़ प्यार किया है.
किसकी आँखों का मैं तारा?
किसने पल-पल मुझे जिया है?

किसने बरसों दूध पिलाया?
निर्बल से बलवान बनाया.
खुद का वत्स रखा भूखा पर-
मुझको भूखा नहीं सुलाया.
वह गौ माता!, मेरी माता!!
*
किसकी गोदी में मैं खेला?
किसने मेरा सब दुःख झेला?
गिरा-उठाया, लाड़ लड़ाया.
हाथ पकड़ चलना सिखलाया.
भारत माता!, मेरी माता!!

किसने मुझको बोल दिये हैं?
जीवन के पट खोल दिये हैं.
किसके बिन मैं रहता गूंगा?
शब्द मुझे अनमोल दिये हैं.
हिंदी माता!, मेरी माता!!
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

6 टिप्‍पणियां:

  1. आ० सलिल जी,
    बहुत सुन्दर।
    अति ही श्रेष्ठ बाल कविता।
    बधाई स्वीकारें।
    सन्तोष कुमार सिंह

    ---Mon, 25/7/11

    जवाब देंहटाएं
  2. आचार्य जी ,
    जन्म से जीवन-की इस यात्रा में आपने जो माताओं के दर्शन कराएं हैं, उनका यदि हम अपने बच्चों को अनुसरण करा सके तो देश
    की गरिमा को निसंदेह शिखरों यक ले जाया जा सकता है |

    इतनी प्रेरणादायी रचना को काश बच्चों के अभिभावक उन तक (बच्चों तक), पहुँचाने का संकल्प लें तो |

    रचना प्रेरक और उत्प्रेरक दोनों है |

    आपको नमन ,वंदन ,
    शुभेच्छु -
    महिपाल

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  3. आदरणीय आचार्य जी ,

    बाल सुलभ कविता में माता के विभिन्न रूपों के दर्शन आपने कराएं है उसकी जरूरत आज देश में बच्चो को तो है ही और साथ ही साथ हम बड़ो को भी है


    सादर नमन
    संतोष भाऊवाला

    2011/7/25

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  4. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaसोमवार, जुलाई 25, 2011 1:40:00 pm

    आ० आचार्य जी,

    सत्य कहा |
    माता के भिन्न रूपों की महिमा अपरम्पार है |
    सचित्र दर्शन से कृतार्थ हुआ |
    सादर
    कमल

    2011/7/25

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  5. माननीय आचार्य सलिल,

    माता सबका रख रही बहुत बहुत ही ख्याल
    बिन बतलाये समझती वो है मन का हाल
    इसीलिये चेरी कहा, मेरी थी यह भूल
    पर सीखा कुछ आपसे यही हुआ अनुकूल ||
    अचल सदा ही जड़ रहा, सलिल सदा गतिमान
    नीर सदा निर्मल करे, निरखे चुप पाषाण ||

    और इस छन्द की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम ही होगी |

    Yours ,

    Achal Verma

    --- On Mon, 7/25/11, sn Sharma

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  6. एक एक शब्द सोने में मढ़ा जाए ऐसा लगरहा है |
    आपकी जय हो |

    Achal Verma

    --- On Mon, 7/25/11

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