सोमवार, 25 जुलाई 2011

छंद सलिला : मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त संजीव 'सलिल'

छंद सलिला :
मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त

संजीव 'सलिल'
*
 
मनहरण घनाक्षरी छंद एक वर्णिक चतुश्पदिक छंद है. इसे कवित्त भी कहते है.
इसमें चार पद (पंक्ति) होते हैं. हर पद में ४ चरण होते हैं. पहले तीन चरणों में ८-८ तथा अंतिम चरण में ७ वर्ण होते हैं.
इसमें मात्राओं की नहीं, वर्णों अर्थात अक्षरों की गणना की जाती है. 
चरणान्त में ८-८-८-७ अक्षरों पर यति या विराम रखने का विधान है. 
पद (पंक्ति) के अंत में लघु-गुरु हो. 
इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान दें.
इस छंद का नामकरण 'घन' शब्द पर है जिसके हिंदी में ४ अर्थ १. मेघ/बादल, २. सघन/गहन, ३. बड़ा हथौड़ा, तथा ४. किसी संख्या का उसी में ३ बार गुणा (क्यूब) हैं. 
इस छंद में चारों अर्थ प्रासंगिक हैं. 
घनाक्षरी में शब्द प्रवाह इस तरह होता है मेघ गर्जन की तरह निरंतरता की प्रतीति हो. 
घनाक्षरी में शब्दों की बुनावट सघन होती है जैसे एक को ठेलकर दूसरा शब्द आने की जल्दी में हो. 
घनाक्षरी पाठक/श्रोता के मन पर प्रहर सा कर पूर्व के मनोभावों को हटाकर अपना प्रभाव स्थापित कर अपने अनुकूल बना लेनेवाला छंद है. 
घनाक्षरी में ८ वर्णों की ३ बार आवृत्ति है.

घनाक्षरी सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
हिन्दी खड़ी बोली
घनाक्षरी रचना विधान :

आठ-आठ-आठ-सात, पर यति रखकर, मनहर घनाक्षरी, छन्द कवि रचिए.
लघु-गुरु रखकर चरण के आखिर में, 'सलिल'-प्रवाह-गति, वेग भी परखिये..
अश्व-पदचाप सम, मेघ-जलधार सम, गति अवरोध न हो, यह भी निरखिए.
करतल ध्वनि कर, प्रमुदित श्रोतागण- 'एक बार और' कहें, सुनिए-हरषिए..
*
भारत गान :
भारती की आरती उतारिये 'सलिल' नित, सकल जगत को सतत सिखलाइये.
जनवाणी हिंदी को बनायें जगवाणी हम, भूत अंगरेजी का न शीश पे चढ़ाइये.
बैर ना विरोध किसी बोली से तनिक रखें, पढ़िए हरेक भाषा, मन में बसाइये.
शब्द-ब्रम्ह की सरस साधना करें सफल, छंद गान कर रस-खान बन जाइए.
*
भारत के, भारती के, चारण हैं, भाट हम, नित गीत गा-गाकर आरती उतारेंगे.
श्वास-आस, तन-मन, जान भी निसारकर,  माटी शीश धरकर, जन्म-जन्म वारेंगे..
सुंदर है स्वर्ग से भी, पावन है, भावन है, शत्रुओं को घेर घाट मौत के उतारेंगे-
कंकर भी शंकर है, दिक्-नभ अम्बर है, सागर-'सलिल' पग नित्य ही पखारेंगे..
*
नया या पुराना कौन?, कोई भी रहे न मौन, करके अछूती बात, दिल को छू जाइए. 
छंद है 'सलिल'-धार, अभिव्यक्ति दें निखार, शब्दों से कर सिंगार, रचना सजाइए..
भाव, बिम्ब, लय, रस, अलंकार पञ्चतत्व, हो विदेह देह ऐसी, कविता सुनाइए.
रसखान रसनिधि, रसलीन करें जग, आरती सरस्वती की, साथ मिल गाइए..
*

6 टिप्‍पणियां:

  1. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com eChintanसोमवार, जुलाई 25, 2011 2:02:00 pm

    आ० आचार्य जी ,
    छन्द-ज्ञान बाँटने के साथ साथ आपकी रचना में अनोखा शब्द-विधान भी
    परिलक्षित है | व्याकरण की चर्चा के साथ उसी के अनुसार मौलिक छन्द-रचना
    आपका स्वाभाविक एवं अलौकिक गुण है | इस कला-कौशल को मेरा नमन !
    सादर
    कमल

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  2. आठ आठ तीन बार,
    ११ ११ ११ ११ = ८
    और सात एक बार,
    ११ ११ ११ ११ = ८
    इकतीस अक्षरों का
    ११११ १११ १ = ८
    योग है घनाक्षरी|
    ११ १ ११११ = ७
    सोलह-पंद्रह पर,
    १११ १११ ११ = ८
    यति का विधान मान
    ११ १ १११ ११ = ८
    शान जो बढाए वो सु-
    ११ १ १११ १ १ = ८
    योग है घनाक्षरी|
    ११ १ ११११ = ७
    वर्ण इकतीसवां स-
    ११ १११११ १ = ८
    -दा ही दीर्घ लीजिएगा
    १ १ ११ ११११ = ८
    काव्य का सुहावना प्र-
    ११ १ ११११ १ = ८
    योग है घनाक्षरी|
    ११ १ ११११ = ७
    आदि काल से लिखा है
    ११ ११ १ ११ १ = ८
    लगभग सब ने ही
    ११११ ११ १ १ = ८
    छंदों में तो जैसे राज-
    ११ १ १ ११ ११ = ८
    भोग है घनाक्षरी|
    a११ १ n११११ = ७

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  3. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com eChintanमंगलवार, जुलाई 26, 2011 5:26:00 am

    आ० आचार्य जी,
    मन्त्र-मुग्ध करती रचना |
    भारत गान का अंतिम चरण विशेष रुचिकर |
    काश आपका परामर्श सफल हो |
    सादर
    कमल

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  4. माननीय आचार्य सलिल,

    माता सबका रख रही बहुत बहुत ही ख्याल
    बिन बतलाये समझती वो है मन का हाल
    इसीलिये चेरी कहा, मेरी थी यह भूल
    पर सीखा कुछ आपसे यही हुआ अनुकूल ||
    अचल सदा ही जड़ रहा, सलिल सदा गतिमान
    नीर सदा निर्मल करे, निरखे चुप पाषाण ||

    और इस छन्द की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम ही होगी |

    Yours ,

    Achal Verma

    --- On Mon, 7/25/11, sn Sharma

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  5. Amitabh Tripathi ✆ द्वारा yahoogroups.com eChintanबुधवार, जुलाई 27, 2011 10:11:00 pm

    आदरणीय आचार्य जी,
    बहुत उपयोगी जानकारी दी है अपने इस छंद के बारे में| एक विनम्र निवेदन करना चाहूँगा कि यह छंद अगनात्मक वार्णिक छंद है अतः एक पंक्ति के बाद दूसरी पंक्ति में प्रायः प्रवाह में भटकाव देखने को मिल जाता है| अतः मेरा अभिमत है कि इस सम्बन्ध में यह भी जोड़ देना चाहिए कि जो प्रवाह प्रतम पंक्ति में बन जाय उसका शेष पंक्तियों में भी पालन किया जाय| इससे छंद दूषित नहीं होता और उसकी गुणवत्ता और प्रभाव बना रहता है| आशा मैं अपना आशय स्पष्ट कर सका हूँ| यदि कुछ अन्यथा लिख दिया हो तो इंगित करियेगा|
    सादर
    अमित
    2011/7/25

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  6. बहुत लाभान्वित करने वाली जानकारी।बहुत आभार आपका आदरणीय। हार्दिक धन्यवाद।🙏🙏🙏

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