शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

एक नवगीत: भोर हुई... संजीव 'सलिल'

एक नवगीत:                                                                           
भोर हुई...
संजीव 'सलिल'
*
भोर हुई, हाथों ने थामा
चैया-प्याली संग अखबार.
अँखिया खोज रहीं हो बेकल
समाचार क्या है सरकार?...
*
कुर्सीधारी शेर पोंछता
खरगोशों के आँसू.
आम आदमी भटका हिरना,
नेता चीता धाँसू.
जनसेवक ले दाम फूलता
बिकता जनगण का घर-द्वार....
*
कौआ सुर में गाये प्रभाती,
शाकाहारी बाज रे.
सिया अवध से है निष्कासित,
व्यर्थ राम का राज रे..
आतंकी है सादर सिर पर
साधु-संत, सज्जन हैं भार....
*
कामशास्त्र पढ़ते हैं छौने,
उन्नत-विकसित देश बजार.
नीति-धर्म नीलाम हो रहे
शर्म न किंचित लेश विचार..
अनुबंधों के प्रबंधों से
संबंधों का बन्टाधार .....
*****
Acharya Sanjiv Salil

4 टिप्‍पणियां:

  1. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaशनिवार, जुलाई 30, 2011 2:57:00 pm

    आदरणीय आचार्य जी ,
    एक अत्यंत सरस-व्यंग नवगीत के लिये साधुवाद | विशेष -
    आतंकी है सादर सिर पर
    साधु-संत, सज्जन हैं भार....
    और
    अनुबंधों के प्रबंधों से
    संबंधों का बंटाढार
    सादर
    कमल

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  2. सिया अवध से है निष्कासित,
    व्यर्थ राम का राज रे..

    एक राजा ने सुनी प्रजा की मांग ना देर लगाईं
    बनवासी होकर भी रानी सीता ना घबराई
    बच्चों की शिक्षा-दिक्षा की उत्तम निकली राह
    सभी दिलोंपर राज किया,अपनी ना की परवाह
    हुआ ना व्यर्थ राम का राज ||


    Achal Verma

    --- On Fri, 7/29/11, sn Sharma

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  3. यथार्थवादी गीत के लिए साधुवाद !
    सादर,
    दीप्ति

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  4. priy sanjiv ji
    aapki vidwata ko bahut bahut nama
    kusum

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