मंगलवार, 26 जुलाई 2011

दोहा सलिला: रवि-वसुधा के ब्याह में... -- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
रवि-वसुधा के ब्याह में...
संजीव 'सलिल'
*
रवि-वसुधा के ब्याह में, लाया नभ सौगात.
'सदा सुहागन' तुम रहो, ]मगरमस्त' अहिवात..

सूर्य-धरा को समय से, मिला चन्द्र सा पूत.
सुतवधु शुभ्रा 'चाँदनी', पुष्पित पुष्प अकूत..

इठला देवर बेल से बोली:, 'रोटी बेल'.
देवर बोला खीझकर:, 'दे वर, और न खेल'..

'दूधमोगरा' पड़ोसी,  हँसे देख तकरार.
'सीताफल' लाकर कहे:, 'मिल खा बाँटो प्यार'..

भोले भोले हैं नहीं, लीला करे अनूप.
बौरा गौरा को रहे, बौरा 'आम' अरूप..

मधु न मेह मधुमेह से, बच कह 'नीबू-नीम'.
जा मुनमुन को दे रहे, 'जामुन' बने हकीम..

हँसे पपीता देखकर, जग-जीवन के रंग.
सफल साधना दे सुफल, सुख दे सदा अनंग..

हुलसी 'तुलसी' मंजरित, मुकुलित गाये गीत.
'चंपा' से गुपचुप करे, मौन 'चमेली' प्रीत..

'पीपल' पी पल-पल रहा, उन्मन आँखों जाम.
'जाम' 'जुही' का कर पकड़, कहे: 'आइये वाम'..

बरगद बब्बा देखते, सूना पनघट मौन.
अमराई-चौपाल ले, आये राई-नौन..

कहा लगाकर कहकहा, गाओ मेघ मल्हार.
जल गगरी पलटा रहा, नभ में मेघ कहार..
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

  1. आचार्य जी ,
    वाह क्या अद्भुत व्यंजनायें -वाह वाह वाह |
    बधाई -महिपाल

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  2. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaमंगलवार, जुलाई 26, 2011 5:51:00 am

    आ० आचार्य जी ,
    आपमें तो दोहा महासागर भरा है |
    शब्द-सीपों में आप इतने सुन्दर मोती पाल रहे हैं और दोनों हाथ उलीच रहे कि हम तो मालामाल हुए जा रहे |
    धन्य है व्यक्तित्व आपका और प्रतिभा आपकी |
    आप सचमुच काव्य-कुवेर हैं |
    सादर प्रणाम
    कमल

    2011/7/25

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  3. आदरणीय आचार्य जी
    बड़े गूढ़ दोहे लिख दे रहे है आप बिहारी की तरह| कभी-कभी समझने के लिए सर खुजाना पड़ जाता है|
    ']मगरमस्त' अहिवात' शायद कुछ टाइपो है इसमें|
    सूर्य-धरा को समय से, मिला चन्द्र सा पूत.
    सुतवधु शुभ्रा 'चाँदनी', पुष्पित पुष्प अकूत..
    बहुत सुन्दर
    मुझे रमेश यादव जी का गीत 'ये पीला वासंतीय चाँद' याद आ गया
    जब धरा थी यह चाँद था सूरज था केवल अम्बर में
    अर्धांगिनी कह कर सूरज की रजनी को भेजा ईश्वर ने
    तब प्रथम रात्रि के चुम्बन का रवि ने निशान कर दिया चाँद
    ये पीला वासन्तिया चाँद ......
    शेष दोहों में बहुत दिमाग लगा है :)
    बधाई!
    सादर
    अमित
    अमिताभ त्रिपाठी
    रचनाधर्मिता

    2011/7/25

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  4. हमारे शब्द छीन लिए आपने अमिताभ जी! इतने दिनों से इनकी अद्भुत रूप से विकट काव्य क्षमता को देख कर - कल से हमने इन्हें 'कविवर' पुकारना शुरू कर दिया है. हमारे दिमाग ने तो साथ देना छोड़ दिया है. B.P. भी Low हो गया है...



    --- On Mon, 25/7/11

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