बुधवार, 29 जून 2011

गीत: काल तो सदा हमारे साथ... --संजीव 'सलिल'

गीत:
काल तो सदा हमारे साथ...
संजीव 'सलिल'
*
काल तो सदा हमारे साथ,
काल की क्यों करते परवाह?
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
काल दे साथ उठाता शीश, काल विपरीत झुकाता माथ...
काल कर देता लम्बे हस्त, काल ही काटे पल में हाथ..
काल जो चाहे वह हो नित्य, काल विपरीत न करिए चाह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
काल के वश में है हर एक, काल-संग चलिए लाठी टेक.
काल से करिए विनय हमेश, न छूटे किंचित बुद्धि-विवेक..
काल दे स्नेह-प्रेम, सद्भाव, काल हर ले ईर्ष्या औ' डाह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*

काल कल, आज और कल मीत, न आता-जाता हुआ प्रतीत.
काल पल सुखद गये कब बीत?, दुखद पल होते नहीं व्यतीत..
काल की गरिमा नभ विस्तीर्ण, काल की महिमा समुद अथाह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
काल से महाकाल
भी भीत, हुए भू-लुंठित हारे-जीत.
काल संग पढ़ो काल के पाठ, न फिर दुहराओ व्यथित अतीत.
काल की सुनो 'सलिल' लय-ताल, काल की गहो हमेषा छांह-
काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
*
 
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. priy sanjiv ji
    aapki vidwata ko mera shat shat naman
    kusum

    जवाब देंहटाएं
  2. sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavitaबुधवार, जून 29, 2011 10:00:00 pm

    आ० आचार्य जी,
    काल के गुण अवगुणों का बखान करती आपकी रचना ने मुग्ध कर दिया | साधुवाद !
    अति सुन्दर
    काल दे साथ उठता शीश, काल विपरीत झुकता माथ
    काल देता लम्बे हस्त, काल ही काटे पल में हाथ " ( वाह कितना sahee !
    भुक्त-भोगी हूँ आचार्य जी )
    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  3. तथ्यों पर आधारित कविता |
    आपका हर वाक्य ही सोचने को वाध्य करता है :
    काल जो चाहे वह हो नित्य, काल विपरीत न करिए चाह-
    काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
    *

    अचल

    जवाब देंहटाएं
  4. सलिल जी,

    बहुत प्रवाहपूर्ण है.

    निम्न विशेष हैं--

    काल तो सदा हमारे साथ,
    काल की क्यों करते परवाह?
    काल है नहीं किसी के साथ,
    काल की यों करते परवाह...
    *
    काल दे साथ उठाता शीश,
    काल विपरीत झुकाता माथ...
    काल कर देता लम्बे हस्त,
    काल ही काटे पल में हाथ..
    काल जो चाहे वह हो नित्य,
    काल विपरीत न करिए चाह-
    काल है नहीं किसी के साथ,
    काल की यों करते परवाह...

    *
    काल के वश में है हर एक,
    काल-संग चलिए लाठी टेक.
    काल से करिए विनय हमेश,
    न छूटे किंचित बुद्धि-विवेक..




    मेरी रचना इस विषय पर मेरे ग्रुप में देख सकते है> आप सदस्य बनेंगे तो ग्रुप की गरिमा बढ़ेगी. घनश्याम जी बन चुके हैं. अनूप जी बनने वाले हैं.
    आपको निमंत्रण भेज चुका हूँ.

    --ख़लिश

    जवाब देंहटाएं
  5. तथ्यों पर आधारित कविता |
    आपका हर वाक्य ही सोचने को वाध्य करता है :
    काल जो चाहे वह हो नित्य, काल विपरीत न करिए चाह-
    काल है नहीं किसी के साथ, काल की यों करते परवाह...
    *

    अचल

    जवाब देंहटाएं