शुक्रवार, 24 जून 2011

दोहा सलिला : मन भरकर करिए बहस संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला :
मन भरकर करिए बहस
संजीव 'सलिल'
*
मन भरकर करिए बहस, 'सलिल' बात-बेबात.
जीत न मानें जीतकर, हार न मानें मात..

मधुर-तिक्त, सच-झूठ या, भला-बुरा दिन रात.
कुछ न कुछ तो बोलिए, मौन न रहिये तात..

हर एक क्रिया-कलाप पर, कर लेती सरकार.
सिर्फ बोलना ही रहा, कर-विमुक्त व्यापार..

नेता, अफसर, बीबियाँ, शासन करते बोल.
व्यापारी नित लूटते, वाणी में रस घोल..

परनिंदा सुख बिन लगे, सारा जीवन व्यर्थ.
निंदा रस बिन काव्य में, मिलता कोई न अर्थ..

द्रुपदसुता, मंथरा की, वाणी जग-विख्यात.
शांति भंग पल में करे, लगे दिवस भी रात..

सरहद पर तैनात हो, महिलाओं की फ़ौज.
सुन चख-चख दुश्मन भगे, आप कीजिये मौज..

सुने ना सुने छात्र पर, शिक्षक बोलें रोज.
क्या कुछ गया दिमाग में, हो इस पर कुछ खोज..

पंडित, मुल्ला, पादरी, बोल-बोल लें लूट.
चढ़ा भेंट लुटता भगत, सुनकर बातें झूठ..

वाणी से होती नहीं, अधिक शस्त्र में धार.
शस्त्र काटता तन- फटे, वाणी से मन यार..

बोल-बोल थकती नहीं, किंचित एक जुबान.
सुन-सुन थक जाते 'सलिल', गुमसुम दोनों कान..

*************

4 टिप्‍पणियां:

  1. priy sanjiv ji
    aapki vidwata ka loha to manna hi padega kitne sundar dohe man khush ho gaya
    kusum

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  2. आचार्य सलिल ,

    लाजवाब दोहे ,
    सबके सब लाजवाब, याद कर लेने लायक |
    ये हीरे के कण सरिख, ये दोहे अनमोल ,
    ये मिश्री के सम लगे, पी पानी में घोल |

    Your's ,

    Achal Verma

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  3. अति सुंदर दोहे.

    ***

    वाणी से होती नहीं, अधिक शस्त्र में धार.
    शस्त्र काटता तन- फटे, वाणी से मन यार..

    --अत्यन्त सुंदर दोहा.

    --ख़लिश

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  4. आपके ऊँचे विचारों को नमन :
    मन को छू गया आपका यह दोहा :
    हर एक क्रिया-कलाप पर, कर लेती सरकार.
    सिर्फ बोलना ही रहा, कर-विमुक्त व्यापार..
    और इस कर विमुक्त व्यापार का यदि उचित प्रयोग हो तो समाज का देश का और विश्व का बहुत भला हो |
    एक सशक्त माध्यम यह रचना है ||
    अचल

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