नवगीत:
टेसू तुम क्यों?....
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
टेसू तुम क्यों लाल हुए?...
*
टेसू तुम क्यों लाल हुए?
फर्क न कोई तुमको पड़ता
चाहे कोई तुम्हें छुए.....
*
आह कुटी की तुम्हें लगी क्या?
उजड़े दीन-गरीब.
मीरां को विष, ईसा को
इंसान चढ़ाये सलीब.
आदम का आदम ही है क्यों
रहा बिगाड़ नसीब?
नहीं किसी को रोटी
कोई खाए मालपुए...
*
खून बहाया सुर-असुरों ने.
ओबामा-ओसामा ने.
रिश्ते-नातों चचा-भतीजों ने
भांजों ने, मामा ने.
कोशिश करी शांति की हर पल
गीतों, सा रे गा मा ने.
नहीं सफलता मिली
'सलिल' पद-मद से दूर हुए...
*
टेसू तुम क्यों?....
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
टेसू तुम क्यों लाल हुए?...
*
टेसू तुम क्यों लाल हुए?
फर्क न कोई तुमको पड़ता
चाहे कोई तुम्हें छुए.....
*
आह कुटी की तुम्हें लगी क्या?
उजड़े दीन-गरीब.
मीरां को विष, ईसा को
इंसान चढ़ाये सलीब.
आदम का आदम ही है क्यों
रहा बिगाड़ नसीब?
नहीं किसी को रोटी
कोई खाए मालपुए...
*
खून बहाया सुर-असुरों ने.
ओबामा-ओसामा ने.
रिश्ते-नातों चचा-भतीजों ने
भांजों ने, मामा ने.
कोशिश करी शांति की हर पल
गीतों, सा रे गा मा ने.
नहीं सफलता मिली
'सलिल' पद-मद से दूर हुए...
*
Dr.M.C. Gupta ✆ ekavita
जवाब देंहटाएं२७ मई
सलिल जी,
नमन है आपकी काव्यात्मकता को. अनोखी है रचना.
निम्न विशेष हैं--
टेसू तुम क्यों लाल हुए?
फर्क न कोई तुमको पड़ता
चाहे कोई तुम्हें छुए.....
*
मीरां को विष, ईसा को
इंसान चढ़ाये सलीब.
नहीं किसी को रोटी
कोई खाए मालपुए...
*
--ख़लिश
सलिल जी,
जवाब देंहटाएंबधाई !
टेसू को संबोधित करके आपने जो ख़ूबसूरत कविता बुनी है, वह अतीत के ऐतिहासिक सत्यों को उजागर करती हुई, आज भी मानव मन में ज्यों की त्यों बसी, नासमझ, अन्याय पूर्ण प्रवृत्ति, समाज व जीवन में व्याप्त हिंसा, स्वार्थ, तेर-मेर और आपा-धापी की ओर संकेत कर, हमें सोचने को विवश करती है.
पुन: बधाई !
सादर,
दीप्ति
आदरणीय सलिल जी ,
जवाब देंहटाएंटेसू के जरिये समाज की जो छवि दिखाई है, काश सभी जीवन में उतार पाते तो इस समाज की छवि कुछ और ही होतीI साधुवाद !!!
आचार्य सलिल जी,
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर!
फिर टेसू ने कहा होगा
"देख तुम्हारे आपस के झगडे
लगता है दिन कितने बिगडे
तुम्हें नहीं कुछ, शर्म के मारे
हम हैं इतने लाल हुए"
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
१२:४४ अपराह्न
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी ,
नवगीत के लिये बधाई | टेसू क्यों लाल हुए बता दूं?
छू कर नहीं कुदृष्टपात से टेसू लाल हुए हैं
अभिशापों के मारे हैं कुंठाओं में उलझे हैं
क्षमाप्रार्थी,
कमल
पोर पोर में कविता भरी पडी है |
जवाब देंहटाएंछूलें चाहे जहां वहीं से
धारा उमड़ पडी है |
रचनात्मक प्रविष्टि |
Your's ,
Achal Verma
आपकी गुणग्राहकता को नमन करते हुए अर्पित हैं कुछ पंक्तियाँ :
जवाब देंहटाएंखलिश सह रहे हो नित हँसकर.
दीप्ति न किंचित मंद.
अचल-अटल संतोष धैर्य रख
विमल कमल सम छंद.
सीताराम कर रहे सबसे
हो न तनिक अब दंद.
'सलिल' मिलें सारिका श्वास से
अब तो आस सुए...
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
आ.सलिल जी ,
जवाब देंहटाएंटेसू के माध्यम से जीवन-सत्यों की सुन्दर अभिव्यक्ति ,आपकी उद्भावनाओँ एवं रचना क्षमता की प्रशंसक हूँ मैं !
- प्रतिभा सक्सेना