गुरुवार, 12 मई 2011

सामयिक गीत : देश को वह प्यार दे दो... संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत :
देश को वह प्यार दे दो...
संजीव 'सलिल'
*
रूप को अब तक दिया जो,
देश को वह प्यार दे दो...

इसी ने पाला हमें है.
रूप में ढाला हमें हैं.
हवा, पानी रोटियाँ दीं-
कहा घरवाला हमें है.

यह जमीं या भू नहीं है,
सच कहूँ माता मही है.
देश हित हो ज़िंदगी यह-
देश पर मरना सही है.

आँख के सब स्वप्न दे दो,
साँस का सिंगार दे दो...
*
देश हित विष भी पियें हम.
देश पर मरकर जियें हम.
देश का ही गान गायें-
अन्यथा लब को सियें हम.

देश-हित का जो विरोधी,
वही है दुश्मन हमारा.
देश के जो काम आये-
भाई कह उसको पुकारा.

देश-हित के द्वार पर
सिर 'सलिल' बन्दनवार दे दो...

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4 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक उद्बोधन
    आपको बहुत बहुत बधाई |
    Your's ,

    Achal Verma

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  2. रंजना सिंह -
    मन पवन कर गयी यह रचना...

    अतिसुन्दर आह्वान....

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  3. बहुत ही सरस और खुबसूरत गीत है आचार्य जी, देश भक्ति और देश प्रेम से ओत प्रोत यह गीत काफी पसंद पड़ा |

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  4. ek khoobsurat aur sashakt rachna aachary jee naman hai aapkee kalam ko | sandesh deti rachna ke liye saadhuvaad !!

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