माननीय राकेश खंडेलवाल जी को समर्पित
गीत
संजीव 'सलिल'
*
चरण रज चन्दन तुम्हारी
काश पाकर तर सकूँ मैं...
*
शब्द आराधक! रुको
जग पग पखारे तो तरेगा.
प्राण जब भी व्यथित होगा-
गीत पढ़कर तम हरेगा.
जी रहे युग कई तुममें
झलक भी हमने न देखी.
बरस कितने ही गँवाये
सत्य की कर-कर अदेखी.
चाहना है मात्र यह
निर्मल चदरिया धर सकूँ मैं...
*
रश्मि रथ राकेश लेकर
पंथ उजियारा करेगा.
सूर्य आकर दीप शत-शत
द्वार पर सादर धरेगा.
कौन पढ़ पाया कहो कब
भाग्य की लिपि लय-प्रलय में.
किन्तु तुमने गढ़ दिये हैं
गीत किस्मत के विलय में.
ढाई आखर भरे गीतों में
पढ़ाओ पढ़ सकूँ मैं...
*
चाकरी होती अधम यह
सत्य पुरखे कह गये हैं.
क्या कहूँ अनमोल पल
कितने समय संग बह गये हैं.
गीत जब पढ़ता तुम्हारे
प्राण-मन तब झूम जाते.
चित्र शब्दों से निकलकर
नयन-सम्मुख घूम जाते.
सीखता लिखना तुम्हें पढ़
काश तुम सा लिख सकूँ मैं...
*
दीप्ति मय होता सलिल जब
उषा आती ऊर्मियाँ ले.
या बहाये दीप संध्या
बहें शत-शत रश्मियाँ ले.
गीत सुनकर गीत गाये
पवन ले-लेकर हिलोरे.
झूम जाये देवता ज्यों
झूमते तरु ले झकोरे.
एक तो पल मिले ऐसा
जिसे जीकर मर सकूँ मैं...
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot. com
गीत
संजीव 'सलिल'
*
चरण रज चन्दन तुम्हारी
काश पाकर तर सकूँ मैं...
*
शब्द आराधक! रुको
जग पग पखारे तो तरेगा.
प्राण जब भी व्यथित होगा-
गीत पढ़कर तम हरेगा.
जी रहे युग कई तुममें
झलक भी हमने न देखी.
बरस कितने ही गँवाये
सत्य की कर-कर अदेखी.
चाहना है मात्र यह
निर्मल चदरिया धर सकूँ मैं...
*
रश्मि रथ राकेश लेकर
पंथ उजियारा करेगा.
सूर्य आकर दीप शत-शत
द्वार पर सादर धरेगा.
कौन पढ़ पाया कहो कब
भाग्य की लिपि लय-प्रलय में.
किन्तु तुमने गढ़ दिये हैं
गीत किस्मत के विलय में.
ढाई आखर भरे गीतों में
पढ़ाओ पढ़ सकूँ मैं...
*
चाकरी होती अधम यह
सत्य पुरखे कह गये हैं.
क्या कहूँ अनमोल पल
कितने समय संग बह गये हैं.
गीत जब पढ़ता तुम्हारे
प्राण-मन तब झूम जाते.
चित्र शब्दों से निकलकर
नयन-सम्मुख घूम जाते.
सीखता लिखना तुम्हें पढ़
काश तुम सा लिख सकूँ मैं...
*
दीप्ति मय होता सलिल जब
उषा आती ऊर्मियाँ ले.
या बहाये दीप संध्या
बहें शत-शत रश्मियाँ ले.
गीत सुनकर गीत गाये
पवन ले-लेकर हिलोरे.
झूम जाये देवता ज्यों
झूमते तरु ले झकोरे.
एक तो पल मिले ऐसा
जिसे जीकर मर सकूँ मैं...
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.
- drdeepti25@yahoo.co.in
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर प्रथा जन्म ले रही है - कविता पे कविता, गीत पे गीत, जैसे इक्के पे इक्का, सत्ते पे सत्ता.....
अति सुन्दर सलिल जी ! वातावरण दिन पर दिन काव्यमय होता जा रहा है. इसी तरह राकेश जी ने अमर ज्योति जी कविता पर कविता जड़ी थी.
यह ख़ूबसूरत सिलसिला इसी तरह जारी रहे काश... !!
शुभकामनाओं सहित, सादर
दीप्ति
achal verma ekavita,
जवाब देंहटाएंआप शायद पहली बार इस पर ध्यान दे रहीं हैं , वैसे इस मंच पर
ये साधारणतया देखने को मिलता है |मैं तो २००८ से देख रहा हूँ |
बहुत अच्छा लगता है |
Your's ,
Achal Verma
बहुत खूब ! कितनी गति है आपके लेखन में......!!
जवाब देंहटाएं(काश कि प्रत्येक कविता के अंत में आपका नाम भी देवनागरी में हो )
सादर, दीप्ति
- drdeepti25@yahoo.co.in
जवाब देंहटाएंहम मई २०११ में इस मंच पर आए हैं, तो इससे पहले कैसे देख सकते थे ? अभी नोट किया इसलिए.
अच्छा तो लगता ही है !
सादर,
दीप्ति
गीतकार राकेश जी के लिए तो जैसे आपने मेरी बात कह दी....
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