मुक्तिका:
मौन क्यों हो?
संजीव 'सलिल'
*
मौन क्यों हो पूछती हैं कंठ से अब चुप्पियाँ.
ठोकरों पर स्वार्थ की, आहत हुई हैं गिप्पियाँ..
टँगा है आकाश, बैसाखी लिये आशाओं की.
थक गये हैं हाथ, ले-दे रोज खाली कुप्पियाँ..
शहीदों ने खून से निज इबारत मिटकर लिखी.
सितासत चिपका रही है जातिवादी चिप्पियाँ..
बादशाहों को किया बेबस गुलामों ने 'सलिल'
बेगमों की शह से इक्के पर हैं हावी दुप्पियाँ..
तमाचों-मुक्कों ने मानी हार जिद के सामने.
मुस्कुराकर 'सलिल' जीतीं, प्यार की कुछ झप्पियाँ..
आदरणीय आचार्य जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!! साधुवाद स्वीकार करे !
सादर संतोष भाऊवाला
आदरणीय आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना हेतु साधुवाद स्वीकार करें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
आ० आचार्य जी ,
जवाब देंहटाएंमार्मिक मुक्तिकाओं के लिये साधुवाद | कुछ शब्दों के सही अर्थ जानने को उत्सुक हूँ जैसे
गिप्पियाँ क्या गुट्टीओं और दुप्पियाँ क्या दुक्कियां के लिये प्रयोग हुए हैं ? ज्ञान-वर्धन
हेतु आभारी रहूँगा |
सादर,
कमल
आदरणीय आचार्य जी ,
जवाब देंहटाएंसुंदर सामयिक यथार्थ चित्रण करती हुई गजल | बधाई हो
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
आदरणीय
जवाब देंहटाएंटिका है आकाश, बैसाखी लिये आशाओं की.
सुन्दर भाव
राकेश
सुन्दर अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंअत्यंत प्रभावोत्पादक मुक्तिका हेतु बधाई सलिल जी.
गिप्पियाँ का अर्थ नहीं समझा.
महेश चन्द्र द्विवेदी
गुणग्राहकता को नमन.
जवाब देंहटाएंआपको रुचा तो मेरा कविकर्म सार्थक हुआ.
गिप्पियाँ = खपरैल या पत्थर के वृत्ताकार टुकड़े जिनको कुछ आयताकार खानों में एक पैर से सरकाकर बच्चे खेल खेलते थे.
गुट्टे/ गुट्टी = घनाकार पांसे जिन्हें हाथ से ऊपर उछालकर-पकड़कर खेल खेला जाता था.
दुप्पी = दुक्की, ताश के खेल का २ का पत्ता.
झप्पियाँ = स्नेह से गले लगाना, संजय दत्त की एक फिल्म से प्रचालन में आया शब्द.