सोमवार, 25 अप्रैल 2011

मुक्तिका: दीवाना भी होता था. ----- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
दीवाना भी होता था.
संजीव 'सलिल'
*
हजारों आदमी में एक दीवाना भी होता था.
खुदाई रौशनी का एक परवाना भी होता था..

सियासत की वजह से हो गये हैं गैर अपने भी.
वगर्ना कहो तो क्या कोई बेगाना भी होता था??

लहू अपना लहू है, और का है खून भी पानी. 
गया वो वक्त जब बस एक पैमाना भी होता था..

निकाली भाई कहकर दुशमनी दिलवर के भाई ने.
कलेजे में छिपाए दर्द मुस्काना भी होता था..

मिली थी साफ़ चादर पर सहेजी थी नहीं हमने.
बिसारा था कि ज्यों की त्यों ही धर जाना भी होता था.. 

सिया जूता, बुना कपड़ा तो इसमें क्या बुराई है?
महल हो या कुटी मिट्टी में मिल जाना ही होता था..

सिया को भेज वन सीखा अवध ने पाठ यह सच्चा 
हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था..

नहाकर स्नेह सलिला में, बहाकर प्रेम की गंगा.
'सलिल' मरघट में सबको एक हो जाना ही होता था
..
*********

7 टिप्‍पणियां:

  1. हजारों आदमी में एक दीवाना भी होता था.
    खुदाई रौशनी का एक परवाना भी होता था..



    शानदार प्रस्तुति आचार्य जी./////...कमाल का लिखा है आपने...

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  2. आचार्य जी की कलम से निकली एक और सुंदर ग़ज़ल। बहुत बहुत बधाई

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  3. सलिल जी,

    बहुत सुंदर रचना है, विशेषत: निम्न--





    मिली थी साफ़ चादर पर सहेजी थी नहीं हमने.
    बिसारा था कि ज्यों की त्यों ही धर जाना भी होता था..

    सिया जूता, बुना कपड़ा तो इसमें क्या बुराई है?
    महल हो या कुटी मिट्टी में मिल जाना ही होता था..

    सिया को भेज वन सीखा अवध ने पाठ यह सच्चा
    हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था..


    पहले पद ने कबीर-वाणी की याद दिला दी--

    "दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया."


    --ख़लिश

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  4. मुक्तिका का यह बंध अद्भुत है

    निकाली भाई कहकर दुशमनी दिलवर के भाई ने.
    कलेजे में छिपाए दर्द मुस्काना भी होता था..

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  5. प्रणाम आचार्य जी !
    बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल वह भी सबसे जुदा भाव लिए हुए ...........
    बधाई गुरुवर .........
    सियासत की वजह से हो गये हैं गैर अपने भी.
    वर्ना क्या कहो तो कोई बेगाना भी होता था??...
    बहुत ही जानदार शेर ......

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  6. सिया को भेज वन सीखा अवध ने पाठ यह सच्चा
    हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था..



    बेहतरीन गिरह लगाईं है आचार्य जी , क्या बात कही है , सिया को भेज वन ......शानदार , पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी | बधाई आपको |

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  7. बहुत ही सुन्दर अशआर कहे हैं आपने आचार्य जी - पढ़कर सुनकर सिल को गदगद करने वाले !



    //सिया को भेज वन सीखा अवध ने पाठ यह सच्चा
    हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था..// इस मुशायरे की "हासिल-ए-मुशायरा" गिरह - आनद आ गया !



    //लहू अपना लहू है, और का है खून भी पानी.
    गया वो वक्त जब बस एक पैमाना भी होता था.. // हासिल-ए-गज़ल शेअर - वाह वाह वाह !



    //सिया जूता, बुना कपड़ा तो इसमें क्या बुराई है?
    महल हो या कुटी मिट्टी में मिल जाना ही होता था.. // "ही होता था" - क्या यहाँ टंकण की त्रुटि है ?



    नहाकर स्नेह सलिला में, बहाकर प्रेम की गंगा.
    'सलिल' मरघट में सबको एक हो जाना ही होता था.. "ही होता था" - क्या यहाँ टंकण की त्रुटि है ?

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