रविवार, 27 फ़रवरी 2011

सामयिक नव गीत: मचा कोहराम क्यों?... ----- संजीव वर्मा 'सलिल'

सामयिक नव गीत

मचा कोहराम क्यों?...

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
(नक्सलवादियों द्वारा बंदी बनाये गये एक कलेक्टर को छुड़ाने के बदले शासन द्वारा ७ आतंकवादियों को छोड़ने और अन्य मांगें मंजूर करने की पृष्ठभूमि में प्रतिक्रिया)
अफसर पकड़ा गया
मचा कुहराम क्यों?...
*
आतंकी आतंक मचाते,
जन-गण प्राण बचा ना पाते.
नेता झूठे अश्रु बहाते.
समाचार अखबार बनाते.

आम आदमी सिसके
चैन हराम क्यों?...
*
मारे गये सिपाही अनगिन.
पड़े जान के लाले पल-छिन.
राजनीति ज़हरीली नागिन.
सत्ता-प्रीति कर रही ता-धिन.

रहे शहादत आम
जनों के नाम क्यों?...
*
कुछ नेता भी मारे जाएँ.
कुछ अफसर भी गोली खाएँ.
पत्रकार भी लहू बहायें.
व्यापारीगण चैन गंवाएं.

अमनपसंदों का हो
चैन हराम क्यों??...
*****
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

11 टिप्‍पणियां:

  1. Saurabh Pandey 6:27pm Feb 28

    //कुछ नेता भी मारे जाएँ.
    कुछ अफसर भी गोली खाएँ.
    पत्रकार भी लहू बहायें.
    व्यापारीगण चैन गंवाएं...//

    भाईसाहब...

    हो कोई, क्यों मारा जाये?
    या, अफसर क्यों गोली खाये?
    पत्रकार निज कर्म निभायें..
    व्यापारीगण धर्म निभायें.

    कभी-कभी की दहशत.. आखिर आम क्यों..??
    जन के रक्षक की शहादत.. हुयी अनाम क्यों??..

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  2. वाह आचार्य की,

    मेरे जीवन भर की कमाई इस सचाई पर कुर्बान.
    सादर
    मदन मोहन 'अरविन्द'

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  3. आदरणीय आचार्य जी,
    सुंदर एवं सामयिक नवगीत के लिए बधाई।
    सादर

    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

    जवाब देंहटाएं
  4. Dr.M.C. Gupta ✆
    ekavita

    विवरण दिखाएँ ४:५७ अपराह्न

    सच कहा सलिल जी.
    यह प्रक्रिया मुफ़्ती मोहम्मद की बेटी को छुड़ाने से आरम्भ हुई थी. कहा जाता है उसका अपहरण भी मात्र आतंकियों को छुड़ाने के लिए किया गया नाटक था.

    --ख़लिश

    जवाब देंहटाएं
  5. sn Sharma ✆
    ekavita

    विवरण दिखाएँ ५:२१ अपराह्न

    आ० आचार्य जी,
    आम आदमी के मरने पर
    कडकी में फाके करने पर
    नेताओं पर कब पड़ा असर
    फिर वे होंगे हैरान क्यों

    कमल

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  6. shubhra

    Wow!

    Sir, how these thuoghts come to your Mind

    shubhra
    I will tell you about my alls friends

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  7. नियमित रूप से दिव्यनर्मदा पढ़िये... धीरे-धीरे विचार आपके पास आने लगेंगे... फिर आप भी लिखना लगेंगे.

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  8. बिलकुल सामयिक रचना है आचार्य जी, लहू की कीमत यहाँ अलग अलग होती है, कीमत इस बात से तय होती है की लहू है किसकी, आम जन की लहू पानी से सस्ता है और खास जन की लहू बहुत ही महंगा |

    बहुत ही सुंदर और भाव पूर्ण नवगीत है , बधाई आचार्य जी |

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  9. आभार बागी जी. समानता का संवैधानिक मौलिक अधिकार होते हुए भी जान की कीमत अलग-अलग होना दुर्भाग्यपूर्ण है. दुख है की इसके खिलाफ किसी ने भी आवाज़ नहीं उठाई. किसी वकील को मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय में उताहना चाहिए.
    निवेदन है की खून पुल्लिंग है.

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