रविवार, 26 दिसंबर 2010

लघुकथा एकलव्य संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा                                                                                       

एकलव्य

संजीव वर्मा 'सलिल'

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- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'

- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'

- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'

-हाँ बेटा.'

- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'

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2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया आचार्य जी, बच्चे के भाव को आपने जुबान दे दिया ...

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  2. कलियुग से ठीक थोड़े पहले के महाभारत काल की एक कथा आज भी कितनी प्रासंगिक है, यह पढ़ना रुचिकर लगा| नमन|

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