
लघुकथा
एकलव्य
संजीव वर्मा 'सलिल'
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- 'नानाजी! एकलव्य महान धनुर्धर था?'
- 'हाँ; इसमें कोई संदेह नहीं है.'
- उसने व्यर्थ ही भोंकते कुत्तों का मुंह तीरों से बंद कर दिया था ?'
-हाँ बेटा.'
- दूरदर्शन और सभाओं में नेताओं और संतों के वाग्विलास से ऊबे पोते ने कहा - 'काश वह आज भी होता.'
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बहुत बढ़िया आचार्य जी, बच्चे के भाव को आपने जुबान दे दिया ...
जवाब देंहटाएंकलियुग से ठीक थोड़े पहले के महाभारत काल की एक कथा आज भी कितनी प्रासंगिक है, यह पढ़ना रुचिकर लगा| नमन|
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