बुधवार, 15 दिसंबर 2010

लघु कथा - वन्देमातरम -- आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

वन्देमातरम [लघु कथा] - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'




साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।

आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है।

आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।

वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।

-'मुसलमानों को 'वन्दे मातरम' नहीं गाना चाहिए, वज़ह यह है की इस्लाम का बुनियादी अकीदा 'तौहीद' है। मुसलमान खुदा के अलावा और किसी की इबादत नहीं कर सकता।' -मौलाना तकरीर फरमा रहे थे।


'अल्लाह एक है, वही सबको पैदा करता है। यह तो हिंदू भी मानते हैं। 'एकोहम बहुस्याम' कहकर हिंदू भी आपकी ही बात कहते हैं। अल्लाह ने अपनी रज़ा से पहले ज़मीनों-आसमां तथा बाद में इन्सान को बनाया। उसने जिस सरज़मीं पर जिसको पैदा किया, वही उसकी मादरे-वतन है। अल्लाह की मर्जी से मिले वतन के अलावा किसी दीगर मुल्क की वफादारी मुसलमान के लिए कतई जायज़ नहीं हो सकती। अपनी मादरे-वतन का सजदा कर 'वंदे-मातरम' गाना हर मुसलमान का पहला फ़र्ज़ है। हर अहले-इस्लाम के लिए यह फ़र्ज़ अदा करना न सिर्फ़ जरूरी बल्कि सबाब का काम है। आप भी यह फ़र्ज़ अदा कर अपनी वतन-परस्ती और मजहब-परस्ती का सबूत दें।' -एक समझदार तालीमयाफ्ता नौजवान ने दलील दी।

मौलाना कुछ और बोलें इसके पेश्तर मजामीन 'वन्दे-मातरम' गाने लगे तो मौलाना ने चुपचाप खिसकने की कोशिश की मगर लोगों ने देख और रोक लिया तो धीरे-धीरे उनकी आवाज़ भी सबके साथ घुल-मिल गयी।
 
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14 टिप्‍पणियां:

  1. दिव्यांशु शर्मा …बुधवार, दिसंबर 15, 2010 12:10:00 am

    बेहद उम्दा .. अपने आप में पूरी है ये लघुकथा | एक लघुकथा में इतना सब समेत लेना आचार्य के अनुभव एवं शिल्प सामर्थ्य को दर्शाता है ..
    मेरा नमन ...

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  2. EK MAHATTAVPOORN LAGHU KATHA KE
    LIYE ACHARYA SANJEEV VERMA "SALIL"
    JEE KO BADHAAEE.

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  3. संजीदा सवाल का सलीके से उत्तर।

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  4. अनिल कुमार ने कहा…बुधवार, दिसंबर 15, 2010 12:14:00 am

    अल्लाह की मर्जी से मिले वतन के अलावा किसी दीगर मुल्क की वफादारी मुसलमान के लिए कतई जायज़ नहीं हो सकती। अपनी मादरे-वतन का सजदा कर 'वंदे-मातरम' गाना हर मुसलमान का पहला फ़र्ज़ है। हर अहले-इस्लाम के लिए यह फ़र्ज़ अदा करना न सिर्फ़ जरूरी बल्कि सबाब का काम है। आप भी यह फ़र्ज़ अदा कर अपनी वतन-परस्ती और मजहब-परस्ती का सबूत दें।'

    सब कुछ समेंट लिया सलिल जी नें।

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  5. बहुत अच्छी लघुकथा, बधाई।

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  6. सलिल जी!
    यह साहस की बात है कि आपने इस लघुकथा को लिखा और प्रस्तुत भी किया।
    इस विषय पर आम तौर पर न तो कोई बोलता है न विचार ही करता है।

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  7. लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`बुधवार, दिसंबर 15, 2010 12:16:00 am

    आपके विचार साहसपूर्ण हैँ
    और तर्क वाजिब
    पर, जो "वँदे मातरम्` "
    नहीँ बोलना चाहते
    वे विरोध के साथ
    विनाश भी कर रहे हैँ
    :-(
    - लावण्या

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  8. भोगवादी मानसिकता के लोग कभी भी किसी को सजदा नहीं करते। उनके लिए सभी कुछ भोग के लिए है, नमन के लिए नहीं। यदि हमने हमारी मातृभूमि को नमन कर लिया तब इसपर हिंसा कैसे कर सकेंगे?

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  9. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'बुधवार, दिसंबर 15, 2010 12:17:00 am

    आत्मीय!
    वन्दे मातरम.
    सभी को धन्यवाद.
    सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम.
    जब सच बोलो तो प्रिय बोलो, अप्रिय सच हो तो मत बोलो की समझौतावादी नीति ने बहुत हानि की है. सच को साहस और समझदारी के साथ कहना ही होगा और उसकी कीमत भी चुकानी होगी.

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  10. छोटी सी कहानी में बहुत बड़ा सन्देश...


    बधाई स्वीकार करें

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  11. संदेशप्रद कहानी अच्छी लगी..

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  12. salilji,bahut acchhi laghukath likhane lage koti saha badhayiyan,mera bhi kahani sangrah tumhare liye - jaldi hi milega aur do pushtake bhi.ravindra khare,united bank,m.p.nagar.bhopal.09893683285

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  13. salil bhai,
    aapka laghu katha sangrah shighra bheje,
    bhopal aaye to jarur milen.
    ravindra khare ,unitedbank,m.p.nagar br,bhopal09893683285

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  14. रविन्द्र भाई!
    वन्दे मातरम.
    लघुकथा संग्रह अभी छपा नहीं है. पाण्डुलिपि तैयार है.

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