गीत:
मैं नहीं....
संजीव 'सलिल'
*
मैं नहीं पीछे हटूँगा,
ना चुनौती से डरूँगा.
जानता हूँ, समय से पहले
न मारे से मरूँगा.....
*
जूझना ही ज़िंदगी है,
बूझना ही बंदगी है.
समस्याएँ जटिल हैं,
हल सूझना पाबंदगी है.
तुम सहायक हो न हो
खातिर तुम्हारी मैं लडूँगा.
जानता हूँ, समय से पहले
न मारे से मरूँगा.....
*
राह के रोड़े हटाना,
मुझे लगता है सुहाना.
कोशिशोंका धनी हूँ मैं,
शूल वरकर, फूल तुमपर
वार निष्कंटक करूँगा.
जानता हूँ, समय से पहले
न मारे से मरूँगा.....
*
जो चला है, वह गिरा है,
जो गिरा है, वह उठा है.
जो उठा, आगे बढ़ा है-
उसी ने कल को गढ़ा है.
विगत से आगत तलक
अनथक तुम्हारे सँग चलूँगा.
जानता हूँ, समय से पहले
न मारे से मरूँगा.....
*
मैं नहीं....
संजीव 'सलिल'
*
मैं नहीं पीछे हटूँगा,
ना चुनौती से डरूँगा.
जानता हूँ, समय से पहले
न मारे से मरूँगा.....
*
जूझना ही ज़िंदगी है,
बूझना ही बंदगी है.
समस्याएँ जटिल हैं,
हल सूझना पाबंदगी है.
तुम सहायक हो न हो
खातिर तुम्हारी मैं लडूँगा.
जानता हूँ, समय से पहले
न मारे से मरूँगा.....
*
राह के रोड़े हटाना,
मुझे लगता है सुहाना.
कोशिशोंका धनी हूँ मैं,
शूल वरकर, फूल तुमपर
वार निष्कंटक करूँगा.
जानता हूँ, समय से पहले
न मारे से मरूँगा.....
*
जो चला है, वह गिरा है,
जो गिरा है, वह उठा है.
जो उठा, आगे बढ़ा है-
उसी ने कल को गढ़ा है.
विगत से आगत तलक
अनथक तुम्हारे सँग चलूँगा.
जानता हूँ, समय से पहले
न मारे से मरूँगा.....
*
आचार्य सलिल जी ,
जवाब देंहटाएंजो चला है, वह गिरा है,
जो गिरा है, वह उठा है.
जो उठा, आगे बढ़ा है-
उसी ने कल को गढ़ा है.
यही आह्वान युग को
प्रगति का वास्तविक
सन्देश दे रहा है | बहुत बहुत बधाई |
युग जागे ,नवयुग आयेगा
नवयुग , सद्विचार लाएगा
हर मानव संकीर्ण भाव से
ऊपर उठकर प्रगति पायेगा ||
Your's ,
Achal Verma
आ० आचार्य जी ,
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत बधाई, अति सुन्दर पंक्ति-
"तुम सहायक हो न हो
खातिर तुम्हारी मैं लडूंगा "
कमल
आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक गीत है. बधाई.
महेश चन्द्र द्विवेदी
आचार्य सलिल जी, अचल जी,
जवाब देंहटाएंआचार्य जी गीत और अचल जी की प्रतिक्रिया अति सुन्दर लगी। बधाई !
अचल जी,
नवयुग सद्विचार लाएगा इस आशावाद को नमन करता हूं। भारतीय कालगणनानुसार एक युग में ४,३२,००० सौर वर्ष होते हैं। इस संख्या को ४, ३, २, १ से गुना जाए तो हमें कृत, त्रेता, द्वापार और कलि युगों की अवधियाँ मिलती हैं। इस हिसाब से कलियुग की अवधि ४,३२,००० वर्षों की होती है, जिसमें से कुछ ५,००० वर्ष बीत चुके हैं। मतलब नया युग और उस के साथ सद्विचार आने के लिए ४,२७,००० वर्ष लगेंगे! :))
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
आदरणीय आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंआपकी इस अद्वितीय,प्रेरक रचना के लिए हार्दिक बधाई .
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
राम राम , सीताराम जी ,
जवाब देंहटाएंयुग तो एक चक्र हैं , जो सदा ही घूमते रहते हैं , एक ही कील पर |
और वह कील वही है जो हमारा प्रवर्तक बन कर सदा ही साथ है |
युगों के आकार का क्या सोचना ,
युग प्रवर्तक तो सदा ही साथ हैं |
अचल है युग सर्वदा , हम चल रहे
जबतलक माथे पे उसका हाथ है ||
समय का क्या , यह तो क्षण में बदल जाए
हम कभी भी अब तलक ना बदल पाए
बदलता है आवरण , पर्यावरण बन
हम हैं उसके अंश जीवन जिससे आये ||
Your's ,
Achal Verma
न चुनोतियों से डरना
जवाब देंहटाएंन मरने की बात करना
तुममे वो हिम्मत है
सदा आगे ही बड़ते रहना