गुरुवार, 11 नवंबर 2010

गीत: कौन हो तुम? संजीव 'सलिल'

गीत:                                                                                                                       
कौन हो तुम? 
संजीव 'सलिल'
*
कौन हो तुम?                 
                   मौन हो तुम?...
*
समय के अश्वों की वल्गा
निरंतर थामे हुए हो.
किसी को अपना किया ना
किसी के नामे हुए हो. 

अनवरत दौड़ा रहे रथ दिशा,
गति, मंजिल कहाँ है?
डूबते ना तैरते,
मझधार या साहिल कहाँ है? 

क्यों कभी रुकते नहीं हो?
क्यों कभी झुकते नहीं हो?
क्यों कभी चुकते नहीं हो?
क्यों कभी थकते नहीं हो?
 
लुभाते मुझको बहुत हो             
जहाँ भी हो जौन हो तुम.
कौन हो तुम?                 
                   मौन हो तुम?...
*
पूछता है प्रश्न नाहक,
उत्तरों का जगत चाहक.
कौन है वाहन सुखों का?
कौन दुःख का कहाँ वाहक? 

करो कलकल पर न किलकिल.
ढलो पल-पल विहँस तिल-तिल.
साँझ को झुरमुट से झिलमिल.
झाँक आँकों नेह हिलमिल. 

क्यों कभी जलते नहीं हो?
क्यों कभी ढलते नहीं हो?
क्यों कभी खिलते नहीं हो?
क्यों कभी फलते नहीं हो? 

छकाते हो बहुत मुझको           
लुभाते भी तौन हो तुम.
कौन हो तुम?                 
                   मौन हो तुम?...
*
*********************
Acharya Sanjiv Salil  http://divyanarmada.blogspot.com

9 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय बस ऐसे ही तुक मिला रहा हूँ:-

    आपके नव गीत उत्तम
    छेड़ते हर बार सरगम
    हम भी तुमको चाहते हैं
    मान्यवर सच में अधिकतम

    व्यर्थता ढोई नहीं है
    आत्मा सोई नहीं है
    प्रश्न भी कोई नहीं है
    औ दिशा खोई नहीं है

    हम जहाँ अक्सर ठहरते
    बुद्धि का वो भौन हो तुम
    जानते हैं कौन हो तुम

    नव गीत के बारे में मेरा ये प्रयास कैसा रहेगा?

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  2. अनवरत दौड़ा रहे रथ
    दिशा, गति, मंजिल कहाँ है?
    डूबते ना तैरते, मझधार
    या साहिल कहाँ है?
    सार्थक प्रश्न है आचार्य.

    सादर

    राकेश

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  3. सखे,
    पूछतें हैं आप, मैं बतला भी दूं तो कल न होगा ,
    अनवरत चलता रहा मैं, पर समस्या हल न होगा
    मौन हूँ , चुप चाप रहता ,
    किसीसे भी कुछन कहता
    पूछना बेकार है की कौन हूँ मैं |
    याद करलो, मैं मिलूंगा
    साथ हरदम मैं चलूँगा
    शर्त है मैं चुप रहूँगा
    जान लो अब जौन हूँ मैं ||

    Your's ,

    Achal Verma

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  4. sundar kavita hetu badhai .

    mahesh chandra dwivedy

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  5. आदरणीया आचार्य जी,
    अच्छी रचना है कुछ शाब्दिक प्रयोग नए अर्थ लिए हुए लगे|
    ये पंक्तियाँ
    मुझे अच्छी लगी

    पूछता है प्रश्न नाहक,
    उत्तरों का जगत चाहक.
    कौन है वाहन सुखों का?
    पुनः अच्छी रचना के लिए बधाई!
    सादर
    अमित

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  6. आचार्य जी बहुत सुन्दर गीत है। बधाई स्वीकारें।
    जौन तथा तौन शब्दों का अर्थ नहीं समझ पाया। कृपया बतायें तो आभारी रहूँगा।
    सन्तोष कुमार सिंह

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  7. आदरणीय आचार्य जी सादर प्रणाम
    इस प्रश्न में भी एक अपनापन झलक रहा है इसीलिए प्रश्न भी यही है और उत्तर भी यही है...कौन हो तुम?
    मन प्रफुल्लित हो गया|

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  8. आ० आचार्य जी,
    कविता मन को छू गई |
    "पूछता है प्रश्न नाहक
    उत्तरों का जगत चाहक
    मौन हो तुम "
    कौन हो तुम "?
    कमल

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