नवगीत:
नफरत पाते रहे प्यार कर
संजीव 'सलिल'
*
हर मर्यादा तार-तार कर
जीती बजी हार-हार कर.
सबक न कुछ भी सीखे हमने-
नफरत पाते रहे प्यार कर.....
*
मूल्य सनातन सच कहते
पर कोई न माने.
जान रहे सच लेकिन
बनते हैं अनजाने.
अपने ही अपनापन तज
क्यों हैं बेगाने?
मनमानी करने की जिद
क्यों मन में ठाने?
छुरा पीठ में मार-मार कर
रोता निज खुशियाँ उधार कर......
*
सेनायें लड़वा-मरवा
क्या चाहे पाना?
काश्मीर का झूठ-
बेसुरा गाता गाना.
है अवाम भूखी दे पाता
उसे न खाना.
तोड़ रहा भाई का घर
भाई दीवाना.
मिले आचरण निज सुधार कर-
गले लगें हम जग बिसार कर.....
*******************
नफरत पाते रहे प्यार कर
संजीव 'सलिल'
*
हर मर्यादा तार-तार कर
जीती बजी हार-हार कर.
सबक न कुछ भी सीखे हमने-
नफरत पाते रहे प्यार कर.....
*
मूल्य सनातन सच कहते
पर कोई न माने.
जान रहे सच लेकिन
बनते हैं अनजाने.
अपने ही अपनापन तज
क्यों हैं बेगाने?
मनमानी करने की जिद
क्यों मन में ठाने?
छुरा पीठ में मार-मार कर
रोता निज खुशियाँ उधार कर......
*
सेनायें लड़वा-मरवा
क्या चाहे पाना?
काश्मीर का झूठ-
बेसुरा गाता गाना.
है अवाम भूखी दे पाता
उसे न खाना.
तोड़ रहा भाई का घर
भाई दीवाना.
मिले आचरण निज सुधार कर-
गले लगें हम जग बिसार कर.....
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सलिल जी कश्मीर के मुद्दे पर बहुत ही करारी चोट जहाँ की है आपने एक तरफ, वहीं घर न संभाल पाने की विफलता को भी दर्शाया है| बहुत ही अच्छा गीत प्रस्तुत किया है आपने| बधाई श्रीमान|
जवाब देंहटाएंआचार्य जी सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंइन्सान के खोखलेपन का दर्शन करता एक सटीक नवगीत|
ek badiya geet prastut ki hai acharya ji aapne.
जवाब देंहटाएंहर मर्यादा तार-तार कर
जवाब देंहटाएंजीती बजी हार-हार कर.
सबक न कुछ भी सीखे हमने-
नफरत पाते रहे प्यार कर.....
बहुत ही अच्छा गीत प्रस्तुत किया है आपने आचार्य जी....बधाई ही आचार्य जी.
सबक न कुछ भी सीखे हमने,
जवाब देंहटाएंनफरत पाते रहे प्यार कर,
आचार्य जी सिर्फ यह दो लाइन पूरी नवगीत को व्यक्त करने मे सक्षम है, बहुत ही सुंदर कृति, बधाई स्वीकार कीजिये |