मुक्तिका...
क्यों है?
संजीव 'सलिल'
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रूह पहने हुए ये हाड़ का पिंजर क्यों है?
रूह सूरी है तो ये जिस्म कलिंजर क्यों है??
थी तो ज़रखेज़ ज़मीं, हमने ही बम पटके हैं.
और अब पूछते हैं ये ज़मीं बंजर क्यों है??
गले मिलने की है ख्वाहिश, ये संदेसा भेजा.
आये तो हाथ में दाबा हुआ खंजर क्यों है??
नाम से लगते रहे नेता शरीफों जैसे.
काम से वो कभी उड़िया, कभी कंजर क्यों है??
उसने बख्शी थी हमें हँसती हुई जो धरती.
आज रोती है बिलख, हाय ये मंजर क्यों है?
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-- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Sameer Lal
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा...ब्लॉग पर टिप्पनी करने का ऑप्शन समझ नहीं आया..
ज़मीन के बंजर होने के कारण को अच्छी तरह विवेचित किया है सलिल जी आपने|
जवाब देंहटाएंदे सके न कभी परवाज़ जो आकाश कभी ;
जवाब देंहटाएंउन के कहने ही पे कतरे गये ये पर क्यों हैं.deepzirvi9815524600
थी तो ज़रखेज़ ज़मीं, हमने ही बम पटके हैं.
जवाब देंहटाएंऔर अब पूछते हैं ये ज़मीं बंजर क्यों है??
बहुत खूब आचार्य जी, सुंदर अभिव्यक्ति पर बधाई,