शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

आदि शक्ति वंदना संजीव वर्मा 'सलिल'

आदि शक्ति वंदना

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..

परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..

जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..

दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.

प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..

मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.

ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....

**************

11 टिप्‍पणियां:

  1. आ० आचार्य जी ,
    आदि शक्ति वन्दना के दोहे भक्ति रस से अभिभूत कर गये |
    विशेष आभारी हूँ | साधुवाद !
    सादर
    कमल

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  2. आचार्य जी सादर प्रणाम
    माँ शारदे की वंदना बहुत ही सुन्दर है|
    ऐसी कामना है कि उनकी कृपा हम सब पर सदा ही बनी रहे|
    नवरात्रि के पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाएं|

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  3. आदि शक्ति को कोटि कोटि नमन्।

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  4. अति सुन्दर। ओम सृ्ष्टीगते सर्वेशवरी श्री दुर्गाये नम:
    नवरात्र पर्व की मंगल कामनायें।

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  5. श्रीप्रकाश शुक्लशनिवार, अक्टूबर 09, 2010 7:49:00 am

    आदरणीय आचार्य जी,
    सुललित आदि शक्ति वंदना के लिए हार्दिक बधाई. बहुत रुचिकर लगी और अपनी प्रार्थना पुस्तक में लिख ली है
    सादर
    श्रीप्रकाश शुक्ल

    जवाब देंहटाएं
  6. आदि शक्ति वंदना

    संजीव वर्मा 'सलिल'
    *
    आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
    रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
    *
    पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
    चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
    *
    अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
    कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..

    परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
    दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..

    जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
    चरण-शरण जग, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
    *
    नाद, ताल, स्वर, सरगम हो तुम. नेह नर्मदा-नाद.
    भाव, भक्ति, ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..

    दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
    उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.

    प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीन सभी आकार.
    चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
    *
    वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
    क्षमा, दया, करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..

    मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
    करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.

    ढाई आखर का लाया हूँ,स्वीकारो माँ हार.
    चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....

    **************

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  7. aderniy sanjeevji
    bahut sundar bhakti geet badhai aapke kavitwa shakti ki bhagwan kare aap swasth rahen sukhi rahen aur khub likhen
    kusum

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  8. आचार्य जी सादर प्रणाम, जय अंबे.

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  9. सलिल जी आज का दिन शुभ जाएगगा| जय माता दी|

    आपसे सविनय अनुरोध है कि हम जैसे व्यक्तियों के सीखने के लिए इन छंदों के साथ इन के बारे में भी थोड़ा बहुत लिख दें|

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  10. आदरणीय आचार्य जी,

    सुन्दर वन्दना!
    "परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत रूप.
    दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..

    दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
    उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग."


    नमन !
    सादर शार्दुला

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  11. चंचल-चपल सलिल को कर दो निश्चल-अचल सुरम्य.
    रक्षा सच की कर वर्मा, धर्मा हो सके अनन्य..

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