मुक्तिका:
यादों का दीप
संजीव 'सलिल'
*
हर स्मृति मन-मंदिर में यादों का दीप जलाती है.
पीर बिछुड़ने से उपजी जो उसे तनिक सहलाती है..
'आता हूँ' कह चला गया जो फिर न कभी भी आने को.
आये न आये, बात अजाने, उसको ले ही आती है..
सजल नयन हो, वाणी नम हो, कंठ रुद्ध हो जाता है.
भाव भंगिमा हर, उससे नैकट्य मात्र दिखलाती है..
आनी-जानी है दुनिया कोई न हमेशा साथ रहे.
फिर भी ''साथ सदा होंगे'' कह यह दुनिया भरमाती है..
दीप तुम्हारी याद हुई, मैं दीपावली मनाऊँगा. दुनिया देखे-लेखे स्मृति जीवन-पथ दिखलाती है..
मन में मन की याद बसी है, गहरी निकल न पायेगी.
खलिश-चुभन पाथेय 'सलिल' बिछुड़े से पुनः मिलाती है..
मन मीरा या बने राधिका, पल-पल तुमको याद करे.
स्वास-आस में याद नेह बन नित नर्मदा बहाती है..
*
नर्मदा = नर्मम ददाति इति नर्मदा = जो मन-प्राणों को आनंद दे वह नर्मदा.
यादों का दीप
संजीव 'सलिल'
*
हर स्मृति मन-मंदिर में यादों का दीप जलाती है.
पीर बिछुड़ने से उपजी जो उसे तनिक सहलाती है..
'आता हूँ' कह चला गया जो फिर न कभी भी आने को.
आये न आये, बात अजाने, उसको ले ही आती है..
सजल नयन हो, वाणी नम हो, कंठ रुद्ध हो जाता है.
भाव भंगिमा हर, उससे नैकट्य मात्र दिखलाती है..
आनी-जानी है दुनिया कोई न हमेशा साथ रहे.
फिर भी ''साथ सदा होंगे'' कह यह दुनिया भरमाती है..
दीप तुम्हारी याद हुई, मैं दीपावली मनाऊँगा. दुनिया देखे-लेखे स्मृति जीवन-पथ दिखलाती है..
मन में मन की याद बसी है, गहरी निकल न पायेगी.
खलिश-चुभन पाथेय 'सलिल' बिछुड़े से पुनः मिलाती है..
मन मीरा या बने राधिका, पल-पल तुमको याद करे.
स्वास-आस में याद नेह बन नित नर्मदा बहाती है..
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नर्मदा = नर्मम ददाति इति नर्मदा = जो मन-प्राणों को आनंद दे वह नर्मदा.
/आनी-जानी है दुनिया कोई न हमेशा साथ रहे.
जवाब देंहटाएंफिर भी ''साथ सदा होंगे'' कह यह दुनिया भरमाती है../
विचित्र कितु सत्य. विशेषकर 'नर्मदा' शब्द का समास-विग्रह पढ़ते समय, अपने 'सरस्वती शिशु मंदिर' के संस्कृत विषय वाले आचार्य जी का स्मरण हो आया. इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
अभिनंदन सलिल जी|
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