तेवरी ::
किसलिए?
नवीन चतुर्वेदी
*
*
बेबात ही बन जाते हैं इतने फसाने किसलिए?
दुनिया हमें बुद्धू समझती है न जाने किसलिए?
ख़ुदग़र्ज़ हैं हम सब, सभी अच्छी तरह से जानते!
हर एक मसले पे तो फिर मुद्दे बनाने किसलिए?
सब में कमी और खोट ही दिखता उन्हें क्यूँ हर घड़ी?
पूर्वाग्रहों के जिंदगी में शामियाने किसलिए?
हर बात पे तकरार करना शौक जैसे हो गया!
भाते उन्हें हर वक्त ही शक्की तराने किसलिए?
*
ठाले-बैठे लिख बैठे जो वह ही जीवन का सच है
जवाब देंहटाएंखतरनाक है सच कहना यह भी दुनिया का एक सच है..
सलिल-नवीन न सच बोलें तो बोलो जोखिम लेगा कौन?
जोखिम लेने पर ही विष अमृत बनता है, यह सच है..
नीलकंठ के आराधक हम नहीं ज़हर से दूर रहें.
तम पीकर उजियारा बाँटे, दीपक बनकर यह सच है.
जिसके तेवर अलग सभी से, जो विद्रोही स्वर साधे.
जवाब देंहटाएंसंस्कार परिवर्तन जिसका, जो दे बद को निज काँधे.
मौन न रह जो सतत चुनौती दे-स्वीकारे आगे बढ़.
वही तेवरी, देखे तेवर, सके जमाना सपने गढ़..
आचार्य जी प्रणाम
जवाब देंहटाएं