शनिवार, 25 सितंबर 2010

मुक्तिका: बिटिया संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

बिटिया

संजीव 'सलिल'
*
*
चाह रहा था जग बेटा पर अनचाहे ही पाई बिटिया.
अपनों को अपनापन देकर, बनती रही पराई बिटिया..

कदम-कदम पर प्रतिबंधों के अनुबंधों से संबंधों में
भैया जैसा लाड़-प्यार, पाने मन में अकुलाई बिटिया..

झिड़की ब्यारी, डांट कलेवा, घुड़की भोजन था नसीब में.
चौराहों पर आँख घूरती,  तानों से घबराई बिटिया..

नत नैना, मीठे बैना का, अमिय पिला घर स्वर्ग बनाया.
हाय! बऊ, दद्दा, बीरन को, बोझा पड़ी दिखाई बिटिया..

खान गुणों की रही अदेखी, रंग-रकम की माँग बड़ी थी.
बीसों बार गयी देखी, हर बार गयी ठुकराई बिटिया..

करी नौकरी घर को पाला, फिर भी शंका-बाण बेधते.
तनिक बोल ली पल भर हँसकर, तो हरजाई कहाई बिटिया..

राखी बाँधी लेकिन रक्षा करने भाई न कोई पाया.
मीत मिले जो वे भी निकले, सपनों के सौदाई बिटिया..

जैसे-तैसे ब्याह हुआ तो अपने तज अपनों को पाया.
पहरेदार ननदिया कर्कश, कैद भई भौजाई बिटिया..

पी से जी भर मिलन न पाई, सास साँस की बैरन हो गयी.
चूल्हा, स्टोव, दियासलाई, आग गयी झुलसाई बिटिया..

फेरे डाले सात जनम को, चंद बरस में धरम बदलकर
लाया सौत सनम, पाये अब राह कहाँ?, बौराई बिटिया..

दंभ जिन्हें हो गए आधुनिक, वे भी तो सौदागर निकले.
अधनंगी पोशाक, सुरा, गैरों के साथ नचाई बिटिया..

मन का मैल 'सलिल' धो पाये, सतत साधना स्नेह लुटाये.
अपनी माँ, बहिना, बिटिया सम, देखे सदा परायी बिटिया..

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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम  

15 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा:


    मन का मैल 'सलिल' धो पाये, सतत साधना स्नेह लुटाये.
    अपनी माँ, बहिना, बिटिया सम, देखे सदा परायी बिटिया..


    -बढ़िया रचना.

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  2. अरे! आपने तुरंत बिटिया से मुलाकात कर ली. धन्यवाद.
    बिटियों को चाचा का लाड़ मिलना ही चाहिए.

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  3. आज के समाज में यही हो रहा है भाई. बहुत ही सच लिखा बिटिया के लिए.आपकी बात भी सच है सच्चाई भी साथ है ५० वर्षों की न यह समाज सुधरेगा न बिटिया का आदर होगा.

    मन का मेल सलिल धो पाए,
    सतत साधना स्नेह लुटाये
    कितनी पीड़ा है कविता में?

    दादी भी बहुत दहेज लाई थी पर समय बीत गया 1960.

    आपकी कविता का एक एक शब्द हीरे की माला सामान पिरोया हुआ है

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  4. सुन्दर कविता .
    अनु

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  5. Sharad Tailang

    सलिल जी

    आप की इस रचना पर आपको ढेरों बधाईयां, साधुवाद या प्रशंसा के जो भी शब्द हों सभी समर्पित हैं ।

    शरद तैलंग

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  6. Dr ajay Janmejay

    * बडे भाग जो बन सका,
    मैं बेटी का बाप.
    हर लेती हैं बेटियाँ
    सारे दुख सन्ताप..

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  7. सलिल जी,

    बहुत प्रभावी रचना है.

    आपकी अनुभूति, लेखन क्षमता और आशु रचना से मंच के अनेक लोग प्रभावित हैं. लेखन चालू रखें.

    --ख़लिश

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  8. अनु जी, शरद जी, डॉ. अजय जी, ॐ जी, खलिश जी,

    आप सबको नमन, धन्यवाद.

    आपकी सराहना ही नव सृजन की प्रेरणा देती है. बिटिया की पीड़ा ने आपके संवेदनशील अंतर्मन को छुआ. काश समाज के हर व्यक्ति का मन इतना ही संवेदनशील हो तो ऐसी रचना ही न हो. अस्तु सिक्के का दूसरा पक्ष भी आपकी अदालत में प्रस्तुत होगा. खलिश जी समस्या पूर्ति को छोड़कर निरंतर ईकविता पर सक्रिय हूँ. अन्य रचनाएँ दिव्यनर्मदा तथा अन्य लगभग २० चिट्ठों में लगातार आ ही रही हैं. आप और आप जिसे अन्य उदारजनों का शुभाशीष ही सर्जन पथ पर आगे बढ़ा रहा है. सबका आभार.

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  9. किसने हैं पैदा किये, ये बेहुदा तर्क
    बेटी बेटा एक से, क्यों करते हो फ़र्क


    बिटिया घर का है सकूँ, बिटिया रिमझिम रैन
    जिस घर मैं बिटिया दुखी, वो ही घर बैचैन


    बेटा है शीतल हवा, बिटिया गंगा नीर
    मात~पिता के वास्ते, दोनों ही जागीर

    डा० अजय जनमेजय बिजनोर {उ०प}

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  10. आ० सलिल जी,
    बेटी के त्रासद जीवन को आपने बड़ी मार्मिकता से दोहों में उतारा है |
    आपकी कलम को नमन !
    कमल

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  11. बेटी पर सुन्दर दोहों के लिये साधुवाद !
    दो सद्यः प्रस्फुटित तुकबंदी मेरी भी स्वीकार करें , आभारी रहूँगा |

    बेटा तो चाहें सभी बेटी मिलते भये उदास
    जिस घर बेटी जन्म ले उस घर लक्ष्मी वास

    बिटिया घर की रोशनी आँगन का सिंगार
    बेटी बिनु सूना भवन ज्यों सरिता बिनु धार

    कमल

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  12. अंदर तक झकझोरती,बिटिया की हर बात
    काश समझ जाऐ बडे, हो सुन्दर सोगात

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  13. बहुत सुन्दर गीतिका है ,बधाई

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  14. आदरणीय आचार्य जी ,
    आपकी निपुण कलम से पुन: एक सुन्दर रचना !
    सादर शार्दुला

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