मंगलवार, 21 सितंबर 2010

त्रिपदिक रचना: प्रात की बात संजीव 'सलिल

त्रिपदिक रचना:

प्रात की बात

संजीव 'सलिल'
*
सूर्य रश्मियाँ
अलस सवेरे आ
नर्तित हुईं.
*
शयन कक्ष
आलोकित कर वे
कहतीं- 'जागो'.
*
कुसुम कली
लाई है परिमल
तुम क्यों सोये?
*
हूँ अवाक मैं
सृष्टि नई लगती
अब मुझको.
*
ताक-झाँक से
कुछ आह्ट हुई,
चाय आ गयी.
*
चुस्की लेकर
ख़बर चटपटी
पढ़ूँ, कहाँ-क्या?
*
अघट घटा
या अनहोनी हुई?
बासी खबरें.
*
दुर्घटनाएँ,
रिश्वत, हत्या, चोरी,
पढ़ ऊबा हूँ.
*
चहक रही
गौरैया, समझूँ क्या
कहती वह?
*
चें-चें करती
नन्हीं चोचें दिखीं
ज़िन्दगी हँसी.
*
घुसा हवा का
ताज़ा झोंका, मुस्काया
मैं बाकी आशा.
*
मिटा न सब
कुछ अब भी बहकी
उठूँ-सहेजूँ.
************

7 टिप्‍पणियां:

  1. आ० आचार्य जी,
    हाई-कू की तर्ज़ पर आपकी त्रिपदिक रचना के प्रत्येक पद भोर की
    सुषमा-सुधा से मन विभोर कर गये | मेरी राय में हाई-कू विधा को
    हिंदी में त्रिपदिक नाम के स्थान पर अगर त्रिपंक्ति-पद कहा जाय तो
    शायद अधिक उपयुक्त हो | पद शब्द से पंक्ति-समूह का बोध होता है
    जैसे सूरदास के पद ,आदि | इससे ' त्रि ' के साथ ' पद ' वाली बाध्यता
    नहीं रहेगी और रचना कई ' पद ' बढ़ सकती है अस्तु इसे त्रिपंक्ति-पद
    वाली काव्य-विधा का नाम देने पर आपका विचार जानने को उत्सुक हूँ |
    सादर;
    कमल

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  2. आत्मीय !
    वन्दे मातरम.
    आपको त्रिपदिक रचना रुची तो मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया.
    एक शब्द अनेक अर्थ, अनेक शब्द एक अर्थ भाषा का वैशिष्ट्य है कमजोरी नहीं. पद का अर्थ पैर, पंक्ति तथा पंक्ति समूह तीनों हैं. दोहा को दो पंक्तियों के कारण ही द्विपदी या दो पदी कहा जाता है. चतुष्पद से आशय चार पैरोंवाला भी है और चार पंक्तिवाला भी. मुझे आपसे सहमत होने में कोई द्विविधा नहीं है किन्तु अन्यत्र हाइकु के आकार-प्रकार की रचनाओं को त्रिपदी ही कहा जा रहा है. जनक छंद तीन पंक्तियों का है, उसे भी त्रिपदी ही कहा जाता है. गायत्री, ककुप आदि तीन पंक्तियों के संस्कृत छंद भी त्रिपदी ही कहे जाते हैं. यहाँ 'तीन पदों की' के लिये 'त्रिपदिक' शब्द का उपयोग हुआ है.'त्रिपंक्तिक' से 'त्रिपदिक' सरल लगता है.
    कृपया, divyanarmada.blogspot.com को आशीष दीजिये. इस पर हिन्दी के व्याकरण, पिंगल, काव्य दोषों और भाषा दोषों को लेकर गंभीर काम करना चाहता हूँ जो अन्यत्र नहीं हो पाता. आप इन और ऐसे अन्य विषयों पर जी खोलकर यहाँ लिख सकते हैं.

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  3. आ० आचार्य जी
    स्पष्टीकरण का आभारी हूँ | धन्यवाद !
    कमल

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  4. नन्हे बिटवा भाई
    चिरंजीव भवः
    आपकी त्रिपिदक रचना अच्छी लगी
    गुड्डोदादी

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  5. सलिल जी आपकी त्रिपदियाँ वाकई बहुत सुंदर बन पड़ी हैं|

    चें-चें करती
    नन्हीं चोचें दिखीं
    ज़िन्दगी हँसी.

    बहुत खूब बहुत खूब|

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रातः काल मे,
    सुंदर त्रिपदिका,
    मजा आ गया,

    बहुत ही कुशल कारीगरी, अभियन्त्रिक शिल्प, बहुत खूब , जय हो ,

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  7. नवीन बागी

    बन्दूक छोड़कर

    करे प्रशंसा..
    *
    न छायावाद

    न हीं प्रगतिवाद

    है धन्यवाद..

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