गुरुवार, 2 सितंबर 2010

बाल गीत: लंगडी खेलें..... आचार्य संजीव 'सलिल'

बाल गीत:             लंगडी खेलें.....          आचार्य संजीव 'सलिल' 

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आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*************

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। श्री कृष्ण-जन्माष्टमी पर ढेर सारी बधाइयाँ !!

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  3. हर पल 'सलिल'
    ख़ुशी के मेले।
    आओ! हम मिल
    लंगडी खेलें....
    आचार्य जी सादर प्रणाम
    बहुत सुन्दर बाल गीत पढ़ने को मिला|
    इस प्रकार के शारीरिक परिश्रम के खेल आजकल के बच्चों के जीवन से गायब होते जा रहे हैं| ऐसे में इस खेल की याद आने पर बड़ी सुखद अनुभूति हुई|

    श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व की ढेरों शुभकामनाएं|

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  4. आचार्य जी,
    बचपना याद आ गया, हम लोग बहुत सारे खेल खेलते थे जिसमे कोई विशेष सामान की जरूरत नहीं होती थी, और शरीर का अभ्यास भी हो जाया करता था, बहुत ही अच्छी बाल गीत

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  5. sarwapratham aapko mera pranaam,
    aap ka yah baal geet mujhe behad pasand aaya. ghar jata hu to kabhi kabhi chhote bachcho ke sath khel leta hu.

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  6. आचार्य जी प्रणाम,

    ये बाल गीत बहुत ही पसंद आया मुझे...अपने गाँव में जाकर ऐसे खेल खेलने में बच्चो के साथ बहुत ही मजा आता है....और आपने तो इस गीत के माध्यम से बैठे बैठे वो दिन याद दिला दिया...
    बहुत ही बढ़िया गीत है.....

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  7. अरे वाह! आप ने तो बचपना याद दिला दिया, इस लगडी मै मै कभी नही हारता था,बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद
    कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  8. प्रवीण पाण्डेय …शनिवार, सितंबर 04, 2010 10:21:00 am

    बहुत सुन्दर।

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  9. बिटवा भाई
    चिरंजीव भवः
    बचपन के दिन भी क्या दिन थे हँसते गाते
    याद आगया बचपन खूब खेला करते थे

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  10. Neelam ने लिखा
    very nice .................post karne se pahley hume bhej diya kriye aacharya ji

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  11. ओढ़ा बहुत
    बड़प्पन भूलें.
    उछलें,
    आसमान को छू लें.
    नीलम भागी,
    जल्दी पकड़ो.
    गिरो न, सम्हलो
    अधिक मत उड़ो.
    तज कतार,
    दें धक्का, ठेलें...

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