शनिवार, 24 जुलाई 2010

नवगीत: हिन्दी का दुर्भाग्य है... ---संजीव 'सलिल'

नवगीत / दोहा गीत :
हिन्दी का दुर्भाग्य है...
संजीव 'सलिल'
*
alphachart.gif



*
हिन्दी का दुर्भाग्य है,
दूषित करते लोग.....
*
कान्हा मैया खोजता,
मम्मी लगती दूर.
हनुमत कह हम पूजते-
वे मानें लंगूर.

सही-गलत का फर्क जो
झुठलाये है सूर.
सुविधा हित तोड़ें नियम-
खुद को समझ हुज़ूर.

चाह रहे जो शुद्धता,
आज मनाते सोग.
हिन्दी का दुर्भाग्य है,
दूषित करते लोग.....
*
कोई हिंगलिश बोलता,
अपना सीना तान.
अरबी के कुछ शब्द कह-
कोई दिखाता ज्ञान.

ठूँस फारसी लफ्ज़ कुछ
बना कोई विद्वान.
अवधी बृज या मैथिली-
भूल रहे नादान.

माँ को ठुकरा, सास को
हुआ पूजना रोग.
हिन्दी का दुर्भाग्य है,
दूषित करते लोग.....
*
गलत सही को कह रहे,
सही गलत को मान.
निज सुविधा ही साध्य है-
भाषा-खेल समान.

करते हैं खिलवाड़ जो,
भाषा का अपमान.
आत्मा पर आघात कर-
कहते बुरा न मान.

केर-बेर के सँग सा
घातक है दुर्योग.
हिन्दी का दुर्भाग्य है,
दूषित करते लोग.....

*******************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. आ० आचार्य जी ,
    बहुत सधा और पैना व्यंग | भला हो अभी भी चेत लें |
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  2. धन्य हो !
    - प्रतिभा

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय आचार्य जी,

    "केर-बेर के सँग सा" ...सुन्दर प्रयोग!

    सादर,
    शार्दुला

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छा लिखा है आपने। विषय का विवेचन और भाषिक संवेदना प्रभावित करती है।
    मेरे ब्लाग पर राष्ट्रमंडल खेलों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के संदर्भ में अपील है। उसे पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया देकर बताएं कि राष्ट्रमंडल खेलों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने की दिशा में और क्या प्रयास किए जाएं।
    मेरा ब्लाग है-
    http://www.ashokvichar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  5. Blogger डॉ० डंडा लखनवी ...मंगलवार, जुलाई 27, 2010 8:31:00 pm

    आपने दोहों के माध्यम से गीत की अति सफल प्रस्तुति की है। भाषा के प्रति आपकी चिंता विचारणीय है। आपकी संवेदना को प्रणाम।
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

    जवाब देंहटाएं