गुरुवार, 17 जून 2010

गीत : प्रतिगीत --- अम्बरीश श्रीवास्तव, सलिल















अब तक बजती बांसुरी, गीतों में है नाम.
आये पूनम रात संग, उसकी याद तमाम..

सरगमी प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ
तुम को दिल में आहिस्ता से सजा लूँ तो चलूँ ……

भीनी यादों को यूँ संजोया है
बीज जन्नत का मैंने बोया है
मन मेरा बस रहा इन गीतों में
ख़ुद को आईना, मैं दिखा लूँ तो चलूँ
सरगमी प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ ……

दिल की आवाज़ यूं सहेजी है
मस्त मौसम में अश्रु छलके हैं
गम की बूँदों को रखा सीपी में
शब्द मुक्तक मैं उठा लूँ तो चलूँ

सरगमी प्यास को अपनी मैं बुझा लूँ तो चलूँ
तुम को दिल में आहिस्ता से सजा लूँ तो चलूँ ……

*

प्रतिगीत:

जिसकी यादों में 'सलिल', खोया सुबहो-शाम.
कण-कण में वह दीखता, मुझको आठों याम..

दूरियाँ उससे जो मेरी हैं, मिटा लूँ तो चलूँ
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……

मैं तो साया हूँ, मेरा ज़िक्र भी कोई क्यों करे.
जब भी ले नाम मेरा, उसका ही जग नाम वरे..
बाग़ में फूल नया कोई खिला लूँ तो चलूँ
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……

ईश अम्बर का वो, वसुधा का सलिल हूँ मैं तो
वास्तव में वही श्री है, कुछ नहीं हूँ मैं तो..
बनूँ गुमनाम, मिला नाम भुला लूँ तो चलूँ.
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……

वही वो शेष रहे, नाम न मेरा हो कहीं.
यही अंतिम हो 'सलिल', अब तो न फेरा हो कहीं..
नेह का गह तजे देह, विदा दो तो चलूँ.
उसमें बस जाऊँ उसे खुद में बसा लूँ तो चलूँ ……

****************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम/ सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

10 टिप्‍पणियां:

  1. नरेन्द्र प्रदीपगुरुवार, जून 17, 2010 6:58:00 pm

    परम मित्र अम्बरीश जी , सुन्दर गीत और राजस्थान का सा चित्र ... आपने कमल किया है,

    सलिल जी ने बहुत अच्छा गीत लिखा है

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut sunder dil ko bhane wale geet hai salil ji or ambrish ji aap dono ka ,pad ker gungunane ka man hota hai

    जवाब देंहटाएं
  3. यही तो अन्तिम लक्ष्य है……………बहुत ही सुन्दर्।



    वन्दना

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर!
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  5. लाजवाब....अतिसुन्दर....



    रंजना

    जवाब देंहटाएं
  6. श्रद्धेय आचार्यश्री ,
    सादर प्रणाम !
    गीत: तो चलूं… पढ़ कर आनन्दविभोर हो गया ।

    इस भागमभाग भरे जीवन में हम जगन्नियंता परमात्मा को याद करना भूल जाते हैं ,
    जबकि आराध्य का स्मरण मात्र सुख का कारक होता है ।
    आपकी इस अति मनोरम आध्यात्मिक रचना ने यह सौभाग्य - सुअवसर दिया ।
    पूरी रचना आत्मिक आह्लाद बढ़ाने वाली है ।
    वही वो शेष रहे, नाम न मेरा हो कहीं
    इन भावों का ही तो अनुगामी हूं स्वयं मैं भी !

    नेह का गह तजे देह, विदा दो तो चलूं
    …लेकिन इस पंक्ति को पढ़ कर बहुत भावुक हो उठा हूं …

    मुझे और मेरे बाद की पीढ़ियों को आपसे चिरकाल तक प्रेरणा मिलती रहे !
    आपसे पीढ़ियां आशीर्वाद , मार्गदर्शन , सुझाव मांगे ,
    और उन्हें कभी नैराश्य का सामना न करना पड़े … बस !
    शत शत वंदन स्वीकार करें …
    आपका
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं



    Rajendra Swarnkar

    जवाब देंहटाएं
  7. आखिरी पंक्तियाँ लाजबाब हैं .बहुत सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  8. डॉ.मृदुल कीर्तिगुरुवार, जून 17, 2010 10:39:00 pm

    Mridul: प्रयाण की शाश्वती से जीवात्मा कुछ ब्रह्म विषयक कर पाने को आतुर है. यही आतुरता ही तो वाहन है जो उसे पाकर ही रुकता है. जिज्ञासु मन को नमन है.

    जवाब देंहटाएं
  9. नेह नर्मदा निर्मला, जग की तारणहार.
    सविनय सलिल प्रणामकर, चाह रहा उद्धार..

    जवाब देंहटाएं