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रविवार, 9 मई 2010
मातृ दिवस पर स्मृति गीत: माँ की सुधियाँ पुरवाई सी.... संजीव 'सलिल'
मातृ दिवस पर स्मृति गीत:
माँ की सुधियाँ पुरवाई सी....
संजीव 'सलिल'
*
तन पुलकित मन प्रमुदित करतीं माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
दूर रहा जो उसे खलिश है तुमको देख नहीं वह पाया.
निकट रहा मैं लेकिन बेबस रस्ता छेक नहीं मैं पाया..
तुम जाकर भी गयी नहीं हो, बस यह है इस बेटे का सच.
साँस-साँस में बसी तुम्हीं हो, आस-आस में तुमको पाया..
चिंतन में लेखन में तुम हो, शब्द-शब्द सुन हर्षाई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
तुम्हें देख तुतलाकर बोला, 'माँ' तुमने हँस गले लगाया.
दौड़ा गिरा बिसूरा मुँह तो, उठा गुदगुदा विहँस हँसाया..
खुशी न तुमने खुद तक रक्खी, मुझसे कहलाया 'पापा' भी-
खुशी लुटाने का अनजाने, सबक तभी माँ मुझे सिखाया..
लोरी भजन आरती कीर्तन, सुन-गुन धुन में छवि पाई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
भोर-साँझ, त्यौहार-पर्व पर, हुलस-पुलकना तुमसे पाया.
दुःख चुप सह, सुख सब संग जीना, पंथ तुम्हारा ही अपनाया..
आँसू देख न पाए दुनिया, पीर चीर में छिपा हास दे-
संकट-कंटक को जय करना, मन्त्र-मार्ग माँ का सरमाया.
बन्ना-बन्नी, होरी-गारी, कजरी, चैती, चौपाई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
गुदड़ी, कथरी, दोहर खो, अपनों-सपनों का साथ गँवाया..
चूल्हा-चक्की, कंडा-लकड़ी, फुंकनी सिल-लोढ़ा बिसराया.
नथ, बेन्दा, लंहगा, पायल, कंगन-सज करवाचौथ मनातीं-
निर्जल व्रत, पूजन-अर्चन कर, तुमने सबका क्षेम मनाया..
खुद के लिए न माँगा कुछ भी, विपदा सहने बौराई सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
घूँघट में घुँट रहें न बिटियाँ, बेटा कहकर खूब पढाया.
सिर-आँखों पर जामाता, बहुओं को बिटियों सा दुलराया.
नाती-पोते थे आँखों के तारे, उनमें बसी जान थी-
'उनका संकट मुझको दे', विधना से तुमने सदा मनाया.
तुम्हें गँवा जी सके न पापा, तुम थीं उनकी परछाईं सी.
तुमको खोकर खुद को खोया, संभव कभी न भरपाई सी ...
*
M VERMA :
जवाब देंहटाएंमाँ की सुधियाँ पुरवाई सी ...
माँ के सहज रूप को आपने सुन्दर गीत का शक्ल दिया.
ऐसी ही मेरी भी माँ थी.
माँ को नमन
माणिक :
जवाब देंहटाएंSalil Ji bahut khub.yaad aayi maa.
अपनी माटी
माणिकनामा
फ़िरदौस ख़ान :
जवाब देंहटाएंमां तुझे सलाम...
अर्चना तिवारी :
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर माँ को समर्पित रचना... मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
महेन्द्र मिश्र :
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...
माँ को प्रणाम कर रही हूँ . सुंदर कविता लगी .
जवाब देंहटाएं:
जवाब देंहटाएंvaah...vaah, aapne bhi maa par adbhut geet diyaahai. aapki har rachanaalazavab hotui hai. lekin is geet ka to kyaa kahane. badhai.
girish pankaj
वाह ! सुन्दर , अद्भुत , भाव विभोर हो गई यह गीत पढ़कर !!
जवाब देंहटाएंमाँ तो केवल माँ होती है, इसकी उसकी सबकी जगकी.
जवाब देंहटाएंसंतानों का जनम सफल हो, करें वंदना माँ के पग की..
माणिक मंजु महेंद्र अर्चना, पंकज कुसुम सलिल-सहभागी-
वर्मा जी फिरदौस नमन लें मातृ -चरण के हम अनुरागी..
आचार्य सलिल ,
जवाब देंहटाएंशायद बहुत सोचने का परिणाम ही रहा हो , पर आज प्रातः ही
मेरी माँ अट्ठारह वर्षों के बाद भी मुझे दर्शन देने मेरे सपनों में आई
और जब नींद खुली और महसूस हुआ की ये सपना था तो आँखे भर आईं|
और अब आप की ये कविता पढी तो स्वयमेव ये पंक्तियाँ बन गयी :
"मन पुलकित, तन गद गद मेरा ,
पढ़कर माँ की ममता, भाई |
नयन नजाने भींग गए क्यों,
सहसा याद अवस ही आई |
हर माँ छाप छोड़ जाती है ,
संतानों पर अपनी ऐसी |
माँ का कोई लाल न ऐसा ,
जिसने होगी सुधि बिसराई |"
आपका धन्यवाद
Your's ,
Achal Verma
तन पुलकित मन प्रमुदित करतीं माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
जवाब देंहटाएंअंत समय तक साथ रहेंगी माँ की यादें अलसाई सी
बचपन में न कुछ भी सुध थी न कुछ अनहोनी का डर था
माँ तेरा आँचल सिर पर था, जीवन चँचल और निडर था
मैं जब-जब छत, दीवारों पर चढ़ कर नीचे कूदा करता
तेरी आँखें तब-तब देखा करतीं थीं कुछ घबराई सी
मैं परदेस गया जब तूने मन में कितनी मन्नत मानी
किंतु धरी जब शैय्या, तेरे मुख में डाल सका न पानी
अंतिम दर्शन न कर पाया, सात समंदर बीच खड़े थे
बात यही घुनती है मन को जैसे कोई रुसवाई सी
दिया ख़लिश जो तूने अपना और कहाँ मैं वो पाऊँगा
ये जीवन भी बीत चला न कभी उऋण मैं हो पाऊँगा
मंज़िल जो पाई पग उस पर धरना तूने ही सिखलाया
मातृ-दिवस पर फूल चढ़ाना तो है खाली भरपाई सी
तन पुलकित मन प्रमुदित करतीं माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
अंत समय तक साथ रहेंगी माँ की यादें अलसाई सी.
आचार्य सलिल जी,
जवाब देंहटाएंअत्युत्तम! अन्तिम दो पंक्तियाँ तो आँखों को नम कर गईं!
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
आदरणीय सलिल जी,
जवाब देंहटाएंभाव बिभोर करती हुयी एक अद्वितीय रचना .
सादर
श्रीप्रकाश
Shyamal Kishor Jha
जवाब देंहटाएंमाँ
मेरे गीतों में तू मेरे ख्वाबों में तू,
इक हकीकत भी हो और किताबों में तू।
तू ही तू है मेरी जिन्दगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
तू न होती तो फिर मेरी दुनिया कहाँ?
तेरे होने से मैंने ये देखा जहाँ।
कष्ट लाखों सहे तुमने मेरे लिए,
और सिखाया कला जी सकूँ मैं यहाँ।
प्यार की झिरकियाँ और कभी दिल्लगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
तेरी ममता मिली मैं जिया छाँव में।
वही ममता बिलखती अभी गाँव में।
काटकर के कलेजा वो माँ का गिरा,
आह निकली उधर, क्या लगी पाँव में?
तेरी गहराइयों में मिली सादगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
गोद तेरी मिले है ये चाहत मेरी।
दूर तुमसे हूँ शायद ये किस्मत मेरी।
है सुमन का नमन माँ हृदय से तुझे,
सदा सुमिरूँ तुझे हो ये आदत मेरी।
बढ़े अच्छाईयाँ दूर हो गन्दगी।
क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
यह अमर रचना मज़रूह साहब की है--
जवाब देंहटाएंउसको नहीं देखा हम ने कभी पर इसकी ज़रूरत क्या होगी
चित्रपट / Film: Daadi Maa
संगीतकार / Music Director: Roshan
गीतकार / Lyricist: मजरूह सुलतान पुरी-(Majrooh)
गायक / Singer(s): Manna De , Mahendra Kapoor
महे: उस को नहीं देखा हमने कभी
पर इसकी ज़रूरत क्या होगी
दोनो: ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी
उस को नहीं देखा हमने कभी...
मन: इनसान तो क्या देवता भी
आँचल में पले तेरे
है स्वर्ग इसी दुनिया में
कदमों के तले तेरे
ममता ही लुटाये जिसके नयन, हो...
दोनो: ममता ही लुटाये जिसके नयन
ऐसी कोई मूरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी...
महे: क्यों धूप जलाये दुखों की
क्यों ग़म की घटा बरसे
ये हाथ दुआओं वाले
रहते हैं सदा सर पे
तू है तो अंधेरे पथ में हमें, हो...
दोनो: तू है तो अंधेरे पथ में हमें
सूरज की ज़रूरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी...
दोनो: कहते हैं तेरी शान में जो
कोई ऊँचे बोल नहीं
भगवान के पास भी माता
तेरे प्यार का मोल नहीं
हम तो यही जाने तुझसे बड़ी, हो...
हम तो यही जाने तुझसे बड़ी
संसार की दौलत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी...
कविता रावत : माँ को समर्पित रचना ..... बहुत सुन्दर भावों से सजी आपकी रचना दिल छू गयी
जवाब देंहटाएंमाँ को हमारा सादर नमन! और आपको प्रस्तुति हेतु धन्यवाद --कविता रावत
अरे वाह .आनंदम
जवाब देंहटाएंसादर,
माणिक
आ. आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंआपकी स्मृतियों ने मेरी अनेक यादों को कुरेद दिया।
पूरी रचना पढ़कर आँखें भर आईं और मैं खोई सी बैठी रह गयी।
सुन्दर भावांजलि!! आपका साधुवाद!!!
-शकुन्तला
आचार्य सलिल,
जवाब देंहटाएंमेरे अंतर्मन पर ये पंक्तियाँ एक अनोखा प्रभाव छोड़ गईं :
उँगली पकड़ सहारा देती, गिरा उठा गोदी में लेती.
चोट मुझे तो दर्द उसे हो, सुखी देखकर मुस्का देती.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी-
'सलिल' अभागा माँ बिन रोता, श्वास -श्वास है रुसवाई सी..
Your's ,
Achal Verma
आ.आचार्य संजीव जी ,कमल जी ,खलिश जी ,राकेश जी ,शकुन्तला जी ,श्रीप्रकाश जी,श्यामल जी ,अचल जी ,राम गौतम जी !
जवाब देंहटाएंपूज्या 'माँ' के प्रति आप सबकी भाव भरी कविताएं पढ़ती रही -एक से एक बढ़ कर .और एक-एक ही नहीं उतनी ही मर्मस्पर्शी दो-दो रचनाएँ !किस के लिए क्या कहूँ यह समझना भी मुश्किल ,कह पाना तो दूर की बात !पढ़ते-पढ़ते आँखें और मन भीगते रहे ,धुलते रहे. सबके अंतर की वाणी कितनी गहन ,पूरी तरह छा लेने वाली .उस मनस्थिति का सिर्फ़ अनुभव कर सकती हूँ
इन कविताओं के लिए कुछ कह नहीं सकती आप सबको और इन गहन भावनाओं को शीष झुका कर प्रणाम करती हूँ .
उसके बाद संकुल मन में जो आया बस वही लिखती हूँ -
बहुत ताप तप चुकी जननि ,अब आगे बढ़ गोदी में ले लो ,
कसो न श्रान्त देह की क्षमता अब न भार यह जाता झेला ,
साहस साथ कहाँ तक देगा ,अब हेला अनसुनी न हो माँ ,
लौट बसेरे पर जाए जो जनम भटकता रहा अकेला !
- प्रतिभा.
shar_j_n
जवाब देंहटाएंतन पुलकित मन प्रमुदित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरबाई सी
आस-निसार में डूबे मन को, हरित द्वीप की सरनाई सी
हिय हिरना सा बिंधा-बिंधा है
गीत कंठ का रुंधा-रुंधा है
कैसे प्यास बुझाए हंसा
क्षीर कीच में गुंधा-गुंधा है
तृषित तनय, तापित तन तनया, तू चानन* की सितलाई सी
तन पुलकित मन प्रमुदित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरबाई सी
चाँद कटोरा लुटा-लुटा है
नभ का आँचल घुटा-घुटा है
पकी फसल ना गीली होवे
कृषक जतन में जुटा-जुटा है
क्षुधित-थकित तन-मन जन-जन का, तू जीवन की कुसलाई सी
तन पुलकित मन प्रमुदित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरबाई सी
वृन्दावन सूना-सूना है
समय माप दूना-दूना है
कांच** नयन घट, दुख की कांकर
टप-टप-टप चूना-चूना है
जसुमति के आँगन में मैया, तू कान्हा की हरुआई सी
तन पुलकित मन प्रमुदित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरबाई सी
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* चानन = चन्दन (मैथिली में)
कांच** = कच्चा (मैथिली में)
ratn jaisi rachna...maa mahan hai...
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