गुरुवार, 13 मई 2010

भोजपुरी दोहे: संजीव 'सलिल'

8 टिप्‍पणियां:

  1. सम्वेदना के स्वर …मंगलवार, मई 18, 2010 10:45:00 pm

    राउर व्यथा बुझा ला राउर कबिता में... एक एक छंद में रउआ जान भर देले बानीं जा...

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  2. M VERMA ने कहा…

    प्रेम बाग़ लहलहा के, क्षेम सबहिं के माँग.
    सूरज सबहिं बर धूप दे, मुर्गा सब के बाँग..
    बहुत सुन्दर बात माटी की बोली में

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  3. बहुत अच्छे लगे दोहे!

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  4. शानदार प्रस्तुती,ब्लॉग को सार्थकता की ओर ले जाती पोस्ट /

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