माँ के प्रति प्रणतांजलि:
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी.
दोहा गीत गजल कुण्डलिनी, मुक्तक छप्पय रूबाई सी..
मन को हुलसित-पुलकित करतीं, यादें 'सलिल' डुबातीं दुख में-
होरी गारी बन्ना बन्नी, सोहर चैती शहनाई सी..
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मानस पट पर अंकित नित नव छवियाँ ऊषा अरुणाई सी.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी..
प्यार हौसला थपकी घुड़की, आशीर्वाद दिलासा देतीं-
नश्वर जगती पर अविनश्वर विधि-विधना की परछांई सी..
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उँगली पकड़ सहारा देती, गिरा उठा गोदी में लेती.
चोट मुझे तो दर्द उसे हो, सुखी देखकर मुस्का देती.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी-
'सलिल' अभागा माँ बिन रोता, श्वास -श्वास है रुसवाई सी..
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जन्म-जन्म तुमको माँ पाऊँ, तब हो क्षति की भरपाई सी.
दूर हुईं जबसे माँ तबसे घेरे रहती तन्हाई सी.
अंतर्मन की पीर छिपाकर, कविता लिख मन बहला लेता-
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
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कौशल्या सी ममता तुममें, पर मैं राम नहीं बन पाया.
लाड़ दिया जसुदा सा लेकिन, नहीं कृष्ण की मुझमें छाया.
मूढ़ अधम मुझको दामन में लिए रहीं तुम निधि पाई सी.
तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी
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aachary ji ..parnam,aapki ,lekhni par saraswti ka vas hai....sunder rchna...
जवाब देंहटाएंसलिल जी,
जवाब देंहटाएंइतना सुन्दर लिखने के लिए समय और विचार कहाँ से लाते हैं आप.
बहुत ही सुन्दर लगी मां को समर्पित ये पंक्तियां...कितना सही कहा है आपने
जवाब देंहटाएंमाँ के प्रति कुछ भी कहे, कितना कह दे व्यक्ति.
जवाब देंहटाएंफिर भी लगता न्यून है, शब्दों की अभिव्यक्ति..
do baar padh chuki
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति...पढ़कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंhttp://rituondnet.blogspot.com/
सफल ब्लॉगिंग के लिए शुभकामनाएं.