रविवार, 3 जनवरी 2010

गीतिका: तितलियाँ --संजीव 'सलिल'

गीतिका





तितलियाँ



संजीव 'सलिल'

*

यादों की बारात तितलियाँ.



कुदरत की सौगात तितलियाँ..



बिरले जिनके कद्रदान हैं.



दर्द भरे नग्मात तितलियाँ..



नाच रहीं हैं ये बिटियों सी



शोख-जवां ज़ज्बात तितलियाँ..



बद से बदतर होते जाते.



जो, हैं वे हालात तितलियाँ..



कली-कली का रस लेती पर



करें न धोखा-घात तितलियाँ..



हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं



क्या हैं शाह औ' मात तितलियाँ..



'सलिल' भरोसा कर ले इन पर



हुईं न आदम-जात तितलियाँ..



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Acharya Sanjiv Salil



http://divyanarmada.blogspot.com

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर गीतिका है सलिल जी .

    उर्मिलेश शंखधार की कविता 'लड़कियां' की एकदम याद आ गई .

    महेश चन्द्र द्विवेदी

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  2. सलिल जी,


    मतला मौज़ू, मकता वजनी
    ग़ज़ल बहुत सुंदर, ज्यों सजनी.


    --ख़लिश

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  3. सुन्दर गीतिका !

    - प्रतिभा.

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  4. संजीव जी,

    गीतिका सुन्दर लगी.

    सादर

    राकेश

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  5. रावेंद्रकुमार रविमंगलवार, जनवरी 05, 2010 12:29:00 pm

    सुंदर गीतिका!

    नया वर्ष हो सबको शुभ!

    जाओ बीते वर्ष

    नए वर्ष की नई सुबह में

    महके हृदय तुम्हारा!

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  6. महेन्द्र मिश्र :मंगलवार, जनवरी 05, 2010 11:31:00 pm

    बहुत सुन्दर रचना...नववर्ष की शुभकामना

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