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नव गीत
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है...
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तप्त भास्कर,
त्रस्त धरा,
थे पस्त जीव सब.
राहत पाई,
मेघदूत
पावस लाये जब.
ताल-तालियाँ-
नदियाँ बहरीन,
उमंगें जागीं.
फसलें उगीं,
आसें उमगीं,
श्वासें भागीं.
करें प्रकाशित,
सकल जगत को
खुशहाली है.
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है....
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रमें राम में,
किन्तु शारदा को
मत भूलें.
पैर जमाकर
'सलिल' धरा पर
नभ को छू लें.
किया अमंगल यहाँ-
वहाँ मंगल
हो कैसे?
मिटा विषमता
समता लायें
जैसे-तैसे.
मिटा अमावस,
लायें पूनम
खुशहाली है.
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है.
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बहुत सुंदर दीवाली की रचना.
जवाब देंहटाएंabhinav rachna par badhaaee
जवाब देंहटाएंdeep parv ki subhkaamnayen
shyam skha shyam
बहुत अच्छा और सार्थक नवगीत. मानों शब्दों से खेल रहे हों आप और एक-एक शब्द चुनकर पिरोये गए हैं इस नवगीत की माला में.
जवाब देंहटाएंRajeevsaxena:
जवाब देंहटाएंAadarniya mamaji namste,
deepawali geet bahut achchha laga parv ka saar geet me jhalak raha hai.
badhai
aapka bhanja
rajeev ktni
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