गीतिका :
आचार्य संजीव 'सलिल'
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आदमी ही भला मेरा गर करेंगे.
बदी करने से तारे भी डरेंगे.
बिना मतलब मदद कर दे किसी की
दुआ के फूल तुझ पर तब झरेंगे.
कलम थामे, न जो कहते हकीकत
समय से पहले ही बेबस मरेंगे.
नरमदा नेह की जो नहाते हैं
बिना तारे किसी के खुद तरेंगे.
न रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते
सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे.
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बहुत सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंAugust 28, 2009 9:45 PM
कलम थामे, न जो कहते हकीकत ..समय से पहले ही बेबस मरेंगे...सही है.
जवाब देंहटाएंन रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते..सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे.
आप यूँ ही सतत बहते लिखते रहें..शुभकामनायें..!!
August 29, 2009 7:10 AM
prabhavpoorn rachna.
जवाब देंहटाएंदिव्य नर्मदा एक अभिनव प्रयास है. नेट पर हिंदी के प्रसार में इसकी भूमिका सराहनीय रहेगी. असीम शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंडॉ. विवेक सक्सेना
नरसिंगपुर
9424762713
आप सबको धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंman bhyee.
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