रविवार, 24 मई 2009

लघुकथा: आचार्य संजीव 'सलिल'

Friday, May 22, 2009

गुरु दक्षिणा




रचनाकार परिचय:-



आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी. ई., एम.आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है। आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नाम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० संस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २० वीं शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, वागविदान्वर सम्मान आदि। म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक रह चुके सलिल जी वर्तमान में लोक निर्माण विभाग मध्य प्रदेश की परिक्षेत्रीय अनुसन्धान प्रयोगशाला में सहायक शोध अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं।


">लघुकथा : गुरु दक्षिणा

एकलव्य का अद्वितीय धनुर्विद्या अभ्यास देखकर गुरुवार द्रोणाचार्य चकराए कि अर्जुन को पीछे छोड़कर यह श्रेष्ठ न हो जाए। उन्होंने गुरु दक्षिणा के बहाने एकलव्य का बाएँ हाथ का अंगूठा मांग लिया और यह सोचकर प्रसन्न हो गए कि काम बन गया। प्रगट में आशीष देते हुए बोले- 'धन्य हो वत्स! तुम्हारा यश युगों-युगों तक इस पृथ्वी पर अमर रहेगा।'



'आपकी कृपा है गुरुवर!' एकलव्य ने बाएँ हाथ का अंगूठा गुरु दक्षिणा में देकर विकलांग होने का प्रमाणपत्र बनवाया और छात्रवृत्ति का जुगाड़ कर लिया। छात्रवृत्ति के रुपयों से प्लास्टिक सर्जरी कराकर अंगूठा जुड़वाया और द्रोणाचार्य एवं अर्जुन को ठेंगा बताते हुए 'अंगूठा' चुनाव चिन्ह लेकर चुनाव समर में कूद पड़ा।



तब
से उसके वंशज आदिवासी द्रोणाचार्य से शिक्षा न लेकर अंगूठा लगाने लगे।


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22 टिप्‍पणियां:

  1. aadarniya aacharya ji ,

    I must say , its amazing story .. the way it turned into a political sattaire..

    waah saheb , aapki lekhni ko naman hai ..

    itni acchi vyangya rachna jo likh di hai aapne ..ye aaj ke bhaarat ki ek sacchai hai ..

    meri dil se badahi kabool kijiyenga .

    vijay

    May 22, 2009

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  2. गहरा कटाक्ष, गंभीर लघुकथा है।

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  3. पौराणिक घटना का कलात्मकता से आधुनिकीकरण हुआ है :)

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  4. दिव्यांशु शर्मारविवार, मई 24, 2009 7:13:00 pm

    मैंने इस से बेहतर लघु कथा आज तक नहीं पढी .. आचार्य को नमन |
    वैसे आचार्य का परिचय और लघुकथा दोनों की लम्बाई समान है... जो कि काफी दिलचस्प है . :-)

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  5. मोहिन्दर कुमाररविवार, मई 24, 2009 7:23:00 pm

    सटीक कटाक्ष कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने आचार्य जी.

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  6. संगीता पुरीरविवार, मई 24, 2009 7:24:00 pm

    इस लघुकथा के बारे में क्‍या कहा जाए !! गजब !!

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  7. VICHAARPRADHAN KATHA MEIN VYANGYA
    HO TO USKAA MAHATTAV AUR BHEE BADH
    JAATAA HAI.UTTAM LAGHUKATHA KE LIYE
    ACHARYA "SALIL" JEE KO BADHAAEE.

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  8. One of the best short story i have ever read. Thanks.

    Alok Kataria

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  9. निधि अग्रवालरविवार, मई 24, 2009 7:29:00 pm

    लघुकथा में गजब की काव्यात्मकता है। व्यंग्य की धार पैनी है।

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  10. तीखा कटाक्ष लिए गहरी लघु कथा.
    बधाई..

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  11. निरन्तर- महेन्द्र मिश्र said...रविवार, मई 24, 2009 7:52:00 pm

    गहरी लघु कथा.दिलचस्प हैं..

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  12. देवेश वशिष्ठ ' खबरी 'रविवार, मई 24, 2009 7:59:00 pm

    हमारे टीवी जगत में एक जुमला बड़ा आम है... फुटेज वेस्ट मत करो... जितने कम फुटेज में जितना ज्यादा काम की बात की जा सके, वो किया जाय... आगे का आशय आप समझ गए होंगे...
    दिव्यांशु जी से पूरी तरह सहमत... इससे बढ़िया लघुकथा मैंने भी नहीं पढी...
    सादर,
    खबरी

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  13. राजीव तनेजा...रविवार, मई 24, 2009 8:53:00 pm

    कम शब्द...गहरी बात...
    तीखा व्यंग्य...

    एक शब्द में कहें तो...'ज़बरदस्त'

    ऐसी पलटी खाती कहानी मैँने आज तक नहीं पढी ....

    बहुत ही बढिया

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  14. राजीव रंजन प्रसाद...रविवार, मई 24, 2009 8:54:00 pm

    आदरणीय सलिल जी,

    अन्य पाठकों की तरह मैं भी इस लघुकथा को अपनी पढी लघुकथाओं में बहुत उँचा दर्जा प्रदान करता हूँ।

    इस लघुकथा को कहने का तरीका भी अनूठा है।

    व्यंग्य का पैनापन है, कविता के उपमान हैं और कथानक भी।

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  15. verma jee

    bahut dino baad kuch accha padhne ko mila .

    etihas aur vyang ka jo mishran aapne hamare samne pesh kiya kabile gour hai.....

    aapko mil rahi subh kamnao ke dher me mujhe meri subhkamna ke gum hone ka dar sata raha hai par aapka ye hak hai jise chinne wala koe nahin.....

    meri badhae swikar karen

    vivekanand yadav

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  16. आचार्य संजीव सलिल साहित्य का गौरव हैं।

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