सोमवार, 18 मई 2009

काव्य किरण: चुटकी -अमरनाथ, लखनऊ

नव काव्य विधा: चुटकी
समयाभाव के इस युग में बिन्दु में सिन्धु समाने का प्रयास सभी करते हैं। शहरे-लखनऊ के वरिष्ठ रचनाकार अभियंता अमरनाथ ने क्षणिकाओं से आगे जाकर कणिकाओं को जन्म दिया है जिन्हें वे 'चुटकी' कहते हैं। चुटकी काटने की तरह ये चुटकियाँ आनंद और चुभन की मिश्रित अनुभूति कराती हैं। अंगरेजी के paronyms की तरह इसकी दोनों पंक्तियों में एक समान उच्चारण लिए हुए कोई एक शब्द होता है जो भिन्नार्थ के कारण मजा देता है।
१ उर्वशी
नाम तुम्हारा उर्वशी,।
तभी तो मेरे उर बसी.
२ अगस्त
सारा सागर पी गए वो,
जब अकेले थे अगस्त.
क्या होगा राम जाने?
है आज तो पंद्रह अगस्त.
३ आनंदी पुरवा
रहता वो आनंदीपुरवा,
.
बहे जहाँ आनंदी पुरवा.
४ डैड
कहा बाप को ज्यों ही डैड.
तभी हो गए डैडी डैड.
५ महिषी
जब सुनने जाते महिषी गाना,
तब कान पड़े महिषी रम्भाना.
तब कान पड़े महिषी रम्भाना.
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