बुधवार, 27 मई 2009

भाषा वैभव: मगही

भाषा वैभव स्तम्भ के अर्न्तगत आप पड़ेंगे भारत की अपेक्षाकृत कम प्रचलित बोलियों की रचनाएँ। मगही किसी समय भारत से बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अंतर्राष्ट्रीय माध्यम भाषा के रूप में भूमिका निभा चुकी है। पाली , प्राकृत, मागधी, कैथी, अंगिका, बज्जिका, मैथिली आदि बिहार में समय-समय पर प्रचलित रही हैं। नयी पीढी को विरासत से परिचित कराने के लिए यह साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ किया जा रहा है। इस सत्र में प्रस्तुत है डॉ. मणि शंकर प्रसाद रचित मगही गीत

गुंजन जय-जय भारती

गाँव-गाँव में, नगर-डगर में
गुन्जय जय-जय भारती....

हिंया न राजा, हिंया न रानी
सबके देश पियारा है।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
सब में भाईचारा है।

झूम-झूम के भारत-जनता
गावय गाँधी आरती।
गाँव-गाँव में, नगर-डगर में
गुन्जय जय-जय भारती....

मरघट से पनघट तक कैसन
रूप-गंध अलसात है।
बंजर भुइंयाँ विहँस रहल आउ
सगरो सुख अलसात है।

गूंगा गावय गीत सोहावन
मरिया बन गेल मालती।
गाँव-गाँव में, नगर-डगर में
गुन्जय जय-जय भारती....


मड़िया के झाँकय इंजोरिया
मधु रस से मातल हर कोर।
गदरैयल जन-जन के भाषा
उतर पड़ल है सुख के भोर।

सुघड़ गोरिया झूम रहल कि
बुढियन ओढे बरसाती।
गाँव-गाँव में, नगर-डगर में
गुन्जय जय-जय भारती...

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