माँ का होना शिलाजीत है...
उसका दर्शन, उसकी वाणी,
उसका इस दुनिया में होना,
खोकर-पाना, पाकर-खोना-
मन-आँगन में सपने बोना।
ऋचा, कीर्तन , भजन, प्रार्थना
सामवेद का प्रथम गीत है...
उसकी पीड़ा, उसके आँसू,
उसके कोमल प्रेम-प्रकम्पन,
साधे-साधे, बाँधे-बाँधे,
मन कोटर के ये स्पंदन।
प्रेम जलधि के जल से उपजा
वाल्मीकि का प्रथम गीत है...
मन में चारों धाम समेटे,
जाने कितने काम समेटे,
पाँच पांडवों में बंटती सी-
कुंती सा संग्राम समेटे।
नीलकंठ सा जीवन जीती-
शिव-भगिनी की सी प्रतीत है...
मेरी माँ का अजब तराजू,
उसमें पाँच-पाँच पलडे हैं।
पाँचों को साधे रखने में,
तीन उठे तो दो गिरते हैं।
फ़िर भी हर पलडे में बैठी,
वह सबकी अनबँटी मीत है...
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मर्मस्पर्शी-मधुर गीत, माँ की याद को ताज़ा कर गया.
जवाब देंहटाएंमाँ का होना शिलाजीत...अछूता प्रतीक. रचना मन को छू गयी.
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