बुधवार, 29 अप्रैल 2009

गीत: मानसरोवर तज... संजीव 'सलिल'

गीत
कागा आया है
जयकार करो,
जीवन के हर दिन
सौ बार मरो...

राजहंस को
बगुले सिखा रहे
मानसरोवर तज
पोखर उतरो...

सेवा पर
मेवा को वरीयता
नित उपदेशो
मत आचरण करो...

तुलसी त्यागो
कैक्टस अपनाओ
बोनसाई बन
अपनी जड़ कुतरो...

स्वार्थ पूर्ति हित
कहो गधे को बाप
निज थूका चाटो
नेता चतुरों...

कंकर में शंकर
हमने देखा
शंकर को कंकर
कर दो ससुरों...

मात-पिता मांगे
प्रभु से लडके
भूल फ़र्ज़, हक
लड़के लो पुतरों...
*****

2 टिप्‍पणियां:

  1. AACHAARYA SANJEEV JEE,
    AAPKE DIVYA NARMADA BLOG PAR PAHLEE
    BAAR AAYAA HOON.BAHUT HEE ACHCHHA LAGAA HAI,
    NETRON KO BHEE AUR MUN KO BHEE.SAHITYIK DIVYATA
    KEE CHAANDNI CHAHUN AUR CHHITKEE HUEE HAI.BLOG
    PREMIYON KO YAHAN AVASHYA AANAA CHAHIYE.

    जवाब देंहटाएं
  2. उर्दू के अदब के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ गज़लकार श्री प्राण, लन्दन ने दिव्यनर्मदा को शुभाशेष भेजकर हमारा उत्साहवर्धन किय. हम आपके आभारी हैं. सं.

    जवाब देंहटाएं