शक्कर मंहगी होना पर...
दोहा गजल
आचार्य संजीव 'सलिल'
शक्कर मंहगी हो रही, कडुवा हुआ चुनाव.
क्या जाने आगे कहाँ, कितना रहे अभाव?
नेता को निज जीत की, करना फ़िक्र-स्वभाव.
भुगतेगी जनता'सलिल',बेबस करे निभाव.
व्यापारी को है महज, धन से रहा लगाव.
क्या मतलब किस पर पड़े कैसा कहाँ प्रभाव?
कम ज़रूरतें कर 'सलिल',कर मत तल्ख़ स्वभाव.
मीठी बातें मिटतीं, शक्कर बिन अलगाव.
कभी नाव में नदी है, कभी नदी में नाव.
डूब,उबर, तरना'सलिल',नर का रहा स्वभाव.
**********************************
पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !