दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

एक कविता : दो कवि - शिखा : संजीव

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एक कविता : दो कवि शिखा: एक मिसरा कहीं अटक गया है दरमियाँ मेरी ग़ज़ल के जो बहती है तुम तक जाने कितने ख़याल टकराते हैं उससे और लौट आते हैं ए...

दोहे : सृष्टि का मूल

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सृष्टि का मूल * अगम अनाहद नाद हीं, सकल सृष्टि का मूल व्यक्त करें लिख ॐ हम, सत्य कभी मत भूल निराकार ओंकार का, चित्र न ...

त्रिलोकी छंद

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ॐ छंद सलिला: त्रिलोकी छंद संजीव * छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चंद्रायण (५ + गुरु लघु गु...

मुक्तक

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मुक्तक: * जो दूर रहते हैं वही तो पास होते हैं. जो हँस रहे, सचमुच वही उदास होते हैं. सब कुछ मिला 'सलिल' जिन्हें अतृप्त हैं वहीं- जो ...
मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

विमर्श : भोजन करिये बाँटकर

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विमर्श : भोजन करिये बाँटकर  हमारा ऋग्वेद हमे बाँट  कर भोजन करने को कहता है | हम जो अनाज खेतों मे पैदा करते है, उसका बंटवारा तो देखिए | ...

कोविद कोरोना विमर्श : ४ को विद? पूछे कोरोना

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कोविद / कोरोना विमर्श : ४ को विद? पूछे कोरोना आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' * को अर्थात कौन और विद अर्थात विद्वान। को...

विरासत : आमिर खुसरो

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विरासत : आमिर खुसरो ग़ज़ल : फ़ारसी + हिंदुस्तानी ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल, दुराये नैना बनाये बतियां । किताब-ए-हिजरां न...

दोहा

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दोहा दुनिया बात से बात * बात बात से निकलती, करती अर्थ-अनर्थ अपनी-अपनी दृष्टि है, क्या सार्थक क्या व्यर्थ? * 'सर! हद सरहद की कहाँ?, कैसे...

नवगीत

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नवगीत: मत हो राम अधीर......... * जीवन के सुख-दुःख हँस झेलो , मत हो राम अधीर..... * भाव, अभाव, प्रभाव ज़िन्दगी. मिलन, विरह, अलगाव जिंदगी....

नवगीत:

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नव गीत: झुलस रहा गाँव..... ... * झुलस रहा गाँव घाम में झुलस रहा... * राजनीति बैर की उगा रही फसल. मेहनती युवाओं की खो गयी नसल.. माटी मोल...

मुक्तिका

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मुक्तिका चाँदनी फसल.. संजीव 'सलिल' * इस पूर्णिमा को आसमान में खिला कमल. संभावना की ला रही है चाँदनी फसल.. * वो ब्यूटी पार्लर से आयी...

दोहा, गीत

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दोहा जय हो सदा नरेन्द्र की, हो भयभीत सुरेन्द्र. न हो कर साधना, भू पर यह देवेंद्र गीत: यह कैसा जनतंत्र... संजीव * यह कैसा जनतंत्र कि ...

कार्यशाला काव्य प्रश्नोत्तर

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कार्यशाला काव्य प्रश्नोत्तर संजय: 'आप तो गुरु हो.' मैं: 'है सराह में, वाह में, आह छिपी- यह देख चाह कहाँ कितनी रही, करल...

कुण्डलिया

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कुण्डलिया : संजीव 'सलिल' * हिन्दी की जय बोलिए, हो हिन्दीमय आप. हिन्दी में पढ़-लिख 'सलिल', सकें विश्व में व्याप .. नेह नर्मदा...
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