दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

janmdin

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हास्य कविता: जन्म दिन * * पत्नी जी के जन्म दिवस पर, पति जी थे चुप-मौन. जैसे उन्हें न मालुम है कुछ, ...
1 टिप्पणी:
सोमवार, 5 दिसंबर 2016

dohanjali

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दोहांजलि * जयललिता-लालित्य को भूल सकेगा कौन? शून्य एक उपजा, भरे कौन? छा गया मौन. * जननेत्री थीं लोकप्रिय...

doha

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दोहा सलिला- कवि-कविता * जन कवि जन की बात को, करता है अभिव्यक्त सुख-दुःख से जुड़ता रहे, शुभ में हो अनुरक्त * हो न ल...
रविवार, 4 दिसंबर 2016

muktika

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कार्यशाला मुक्तिका दिल लगाना सीखना है आपसे २१२२ २१२२ २१२ * दिल लगाना सीखना है आपसे जी चुराना सीखना है आपसे * वायदे को आप जुमला कह ग...

गीत

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एक रचना * आकर भी तुम आ न सके हो पाकर भी हम पा न सके हैं जाकर भी तुम जा न सके हो करें न शिकवा, हो न शिकायत * यही समय की बलिहारी है घटन...

आपने वोट किया है अतः आप परिणाम जानने के अधिकारी हैं

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आदरणीय दोस्तो विवेक के अभिवादन     आप जानते हैं कि  इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स के काउंसिल मेम्बर के चुनाव में  मै मित्रो के आग्रह पर आप सब ...
शनिवार, 3 दिसंबर 2016

गीत

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एक रचना * जो पाना था, नहीं पा सका जो खोना था, नहीं खो सका हँसने की चाहत में मनुआ कभी न खुलकर कहीं रो सका ...
शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

samyik rachna

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सामयिक रचना चलचित्रागार में राष्ट्रगान क्यों? राष्ट्रगीत का गान गर्व अनुभूति कराता भारतीय हम एक हमेशा याद कराता जन-मन...

muktak

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कार्यशाला- एक मुक्तक * तुम एक सुरीला मधुर गीत, मैं अनगढ़ लोकगीत सा हूँ  तुम कुशल कलात्मक अभिव्यंजन, मैं अटपट बातचीत सा हूँ - फौजी तुम व...
मंगलवार, 22 नवंबर 2016

geet

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एक रचना अनाम * कहाँ छिपे तुम? कहो अनाम! * जग कहता तुम कण-कण में हो सच यह है तुम क्षण-क्षण में हो हे अनिवासी...

chhand

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रसानंद दे छंद नर्मदा ​ ​५६ : ​दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​,गीतिका,​घनाक्षरी, बर...

geet

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एक गीत: मत ठुकराओ संजीव 'सलिल' * मत ठुकराओ तुम कूड़े को कूड़ा खाद बना करता है..... * मेवा-मिष्ठानों ने तुमको जब देखो तब ललचाया है...

geet

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एक गीत: मत ठुकराओ संजीव 'सलिल' * मत ठुकराओ तुम कूड़े को कूड़ा खाद बना करता है..... * मेवा-मिष्ठानों ने तुमको जब देखो तब ललचाया है...

navgeet

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नवगीत: जो जी चाहे करूँ मुझे तो है इसका अधिकार बीड़ी-गुटखा बहुत जरूरी साग न खा सकता मजबूरी पौआ पी सकता हूँ, लेकिन दूध नहीं स्वीकार जो ज...

navgeet

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नवगीत: रस्म की दीवार करती कैद लेकिन आस खिड़की  रूह कर आज़ाद देती सोच का दरिया भरोसे का किनारा कोशिशी सूरज न हिम्मत कभी हारा उमीदें सूखी...

navgeet

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नवगीत: अहर्निश चुप लहर सा बहता रहे आदमी क्यों रोकता है धार को? क्यों न पाता छोड़ वह पतवार को पला सलिला के किनारे, क्यों रुके? कूद छप स...

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जन्म दिन पर अनंत शुभ कामनाएँ  आदरणीया लावण्य शर्मा शाह को  * उमर बढ़े बढ़ते रहे ओज, रूप, लावण्य  हर दिन दिनकर दे नए सपने चिर तारुण्य  सपने चि...

shubhkamna

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जन्म दिन पर अनंत शुभ कामनाएं  अप्रतिम तेवरीकार अभियंता दर्शन कुलश्रेष्ठ 'बेजार' को  * दर्शन हों बेज़ार के, कब मन है बेजार  दो हजार क...

geet

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गीत: पहले जीभर..... संजीव 'सलिल'  * पहले जीभर लूटा उसने, फिर थोड़ा सा दान कर दिया. जीवन भर अपमान किया पर मरने पर सम्मान कर दिया.......
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