दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.

शनिवार, 23 जुलाई 2016

ahir chhand

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रसानंद दे छंद नर्मदा  ​  ​४०     :  ​अहीर  छन्द     ​दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरि...
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शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

नवगीत

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एक रचना  कारे बदरा  * आ रे कारे बदरा * टेर रही धरती तुझे  आकर प्यास बुझा  रीते कूप-नदी भरने की  आकर राह सुझा  ओ रे कारे बदरा  * ...

दोहा यमक १

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दोहा-यमक * गले मिले दोहा यमक, गणपति दें आशीष। हो समृद्ध गणतंत्र यह, गणपति बने मनीष।। * वीणावादिनि शत नमन, साध सकूं ...
गुरुवार, 21 जुलाई 2016

नवगीत

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दोहा - सोरठा गीत पानी की प्राचीर * आओ! मिलकर बचाएँ, पानी की प्राचीर। पीर, बाढ़ - सूखा जनित  हर, कर दे बे-पीर।। * रखें बावड़ी साफ़, गह...

navgeet

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सोरठा - दोहा गीत संबंधों की नाव * संबंधों की नाव, पानी - पानी हो रही। अनचाहा अलगाव, नदी-नाव-पतवार में।। * स्नेह-सरोवर सूखते, बाकी ...
बुधवार, 20 जुलाई 2016

राष्ट्रीय शिक्षा नीति

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आदरणीय प्रकाश जावड़ेकर जी  मानव संसाधन विकास मंत्रालय, पता: 301, सी-विंग, शास्त्री भवन,  नयी दिल्ली-110-001 महोदय  वंदे भारत-भारती।  नई प्रस...

मुक्तिका

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एक रचना * दर्दे सर, दर्दे जिगर, दर्दे कमर दे दर्दे दिल या खुदाया शायरा का संग भी इस बार दे।। जो लिखे, सुन दाद देकर दर्द सारे सह सकूँ पी...

doha

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दोहा मुक्तिका * भ्रम-शंका को मिटाकर, जो दिखलाये राह  उसको ही गुरु मानकर, करिये राय-सलाह  * हर दिन नया न खोजिए, गुरु- न बदलिए राह ...
रविवार, 17 जुलाई 2016

janak chhand

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जनक छन्द सलिला  * श्याम नाम जपिए 'सलिल' काम करें निष्काम ही  मत कहिये किस्मत बदा  * आराधा प्रति पल सतत जब राधा ने श्याम को बही भक्त...

anugeet chhand

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रसानंद दे छंद नर्मदा ३८ : छन्द दोहा, सोरठा, रोला, आल्हा, सार, ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई, हरिगीतिका, उल्लाला,गीतिका,घनाक्षरी, बरवै, त्र...

व्यंग्य लेख

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व्यंग्य लेख- अभियांत्रिकी शिक्षा और जुमलालॉजी   *                  आजकल अभियांत्रिकी शिक्षा पर गर्दिश के बादल छाये हैं। अच्छी-खासी...

navgeet

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एक रचना  संजीव  * नहा रहे हैं बरसातों में  हरे-भरे बतियाते झाड़ अपनी जगह हमेशा ठांड़े झूम-झूम मस्ताते झाड़ * सूर्य-बल्ब जब होता रौशन मेक'प...

laghukatha

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लघुकथा खतरा * जोरदार बरसात, अँधेरी रात, डरती बचती चली जा रही थी एक कुतिया अकेली। कुछ कुत्तों को देखकर डरी-सहमी सोचने लगी आगे जाएया न जाए? ...
बुधवार, 13 जुलाई 2016

muktak

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मुक्तक  * था सरोवर, रह गया पोखर महज क्यों आदमी? जटिल क्यों?, मिलता नहीं है अब सहज क्यों आदमी? काश हो तालाब शत-शत कमल शतदल खिल सकें- आदमी ...

lekh doha nasha mukti

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विशेष लेख                                                   नशा: कारण और निवारण                                               ...
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