दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.

रविवार, 26 जून 2016

geet

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​​ रचना - प्रति रचना  राकेश खण्डेलवाल-संजीव 'सलिल' * रचना- जिन कर्जों को चुका न पायें उनके रोज तकाजे आते हमसे मांग रही ...
शनिवार, 25 जून 2016

geet

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​​रचना-प्रति रचना  राकेश खण्डेलवाल-संजीव सलिल  दिन सप्ताह महीने बीते घिरे हुए प्रश्नों में जीते अपने बिम्बों में अब खुद मैं प्रश्न चि...
मंगलवार, 21 जून 2016

navgeet - ram re

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नवगीत  राम रे! * राम रे!  कैसो निरदै काल? * भोर-साँझ लौ गोड़ तोड़ रए  कामचोर बे कैते।  पसरे रैत ब्यास गादी पै  भगतन संग लप...
सोमवार, 20 जून 2016

doha

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दोहा सलिला * जूही-चमेली देखकर, हुआ मोगरा मस्त  सदा सुहागिन ने बिगड़, किया हौसला पस्त  * नैन मटक्का कर रहे, महुआ-सरसों झूम  बरगद...

dwipadiyan

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एक रचना  * प्रभु जी! हम जनता, तुम नेता हम हारे, तुम भए विजेता।।  प्रभु जी! सत्ता तुमरी चेरी   हमें यातना-पीर घनेरी ।।  प्...
रविवार, 19 जून 2016

navgeet

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स्मृति गीत: हर दिन पिता याद आते हैं... संजीव 'सलिल'  * जान रहे हम अब न मिलेंगे.  यादों में आ, गले लगेंगे. आँख खुलेगी तो उदास हो-...

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एक रचना * होरा भूँज रओ छाती पै आरच्छन जमदूत पैदा होतई बनत जा रए बाप बाप खें, पूत * लोकनीति बनबास पा रई रा...
शनिवार, 18 जून 2016

navgeet

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एक रचना- गीत और नवगीत नहीं हैं भारत इंग्लिस्तान। बने मसीहा खींचें सरहद मठाधीश हैरान। पकड़ न आती गति-यति जैसे हों बच्चे शैतान। अनुप्रासों ...
शुक्रवार, 17 जून 2016

navgeet

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एक रचना * तुम विरागी, वीतरागी विदेही राजा जनक से * सिर उठाये खड़े हो तुम हर विपद से लड़े हो तुम हरितिमा का छत्र धारे ...

MUKTAK

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मुक्तक * महाकाल भी काल के, वश में कहें महेश उदित भोर में, साँझ ढल, सूर्य न दीखता लेश जो न दिखे अस्तित्व है, उसका उसमें प्राण दो दिखता ...
गुरुवार, 16 जून 2016

vidhata chhand

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रसानंद दे छंद नर्मदा ३४  :   विधाता/शुद्धगा छंद    गुरुवार, १५  जून २०१६    ​दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक, रूपमाला (म...

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एक रचना यार शिरीष! * यार शिरीष! तुम नहीं सुधरे * अब भी खड़े हुए एकाकी रहे सोच क्यों साथ न बाकी? तुमको भाते घर, माँ, बहिनें हम चाहें...
बुधवार, 15 जून 2016

doha

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दोहा सलिला-  ब्रम्ह अनादि-अनन्त है, रचता है सब सृष्टि  निराकार आकार रच, करे कृपा की वृष्टि  * परम सत्य है ब्रम्ह ही, चित्र न उसका ...

navgeet

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नवगीत एक-दूसरे को * एक दूसरे को छलते हम बिना उगे ही नित ढलते हम। * तुम मुझको 'माया' कहते हो, मेरी ही 'छाया' गहते हो...
रविवार, 12 जून 2016

navgeet

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एक रचना शिरीष के फूल फूल-फूल कर बजा रहे हैं   बीहड़ में रमतूल, धूप-रूप पर मुग्ध, पेंग भर छेड़ें झूला झूल न सुध...

samanvay prakashan abhiyan

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समन्वय प्रकाशन अभियान समन्वय प्रकाशन अभियान रचनाकारों को कृति प्रकाशन में सहयोग करनेवाला अव्यवसायिक मंच है। पाण्डुलिपि सुधार, टंकण,...
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