दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.

रविवार, 20 दिसंबर 2015

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एक रचना- एक दिन ही नया * एक दिन ही नया बाकी दिन पुराना। मन सनातन सत्य निश-दिन गुनगुनाना। * समय कब रुकता? निरंतर चला करता...

नवगीत :

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एक रचना - भीड़ में * भीड़ में भी है अकेला आदमी * नाम के रिश्ते कई हैं काम का कोई नहीं भोर के चाहक अनेकों शाम का कोई नहीं पुरातन है ...
शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

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नवगीत - फ़िक्र मत करो * फ़िक्र मत करो सब चलता है * सूरज डूबा उगते-उगते क्षुब्ध उषा को ठगते-ठगते अचल धरा हो चंचल धँसती  लुटी दुपहरी ब...
गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

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नवगीत: परीक्षा * किसकी कौन परीक्षा लेता? * यह सोचे मैं पढ़कर आया वह कहता है गलत बताया दोनों हैं पुस्तक के कैदी क्या जानें क्या खोया...

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नवगीत: अपनी ढपली * अपनी ढपली अपना राग * ये दो दूनी तीन बतायें पाँच कहें वे बाँह चढ़ायें चार न मानें ये, वे कोई पार किसी से कैसे पाय...

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नवगीत- आँगन टेढ़ा नाच न आये * अपनी-अपनी चाल चल रहे खुद को खुद ही अरे! छल रहे जो सोये ही नहीं जान लो उन नयनों में स्वप्न पल रहे स...

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नवगीत  - भूमि मन में बसी  * भूमि मन में बसी ही हमेशा रहे  * पाँच माताएँ हैं एक पैदा करे दूसरी भूमि पर पैर मैंने धरे दूध गौ का पिया पुष्ट तन...
बुधवार, 16 दिसंबर 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 25

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:1: टूटा जो खिलौना है ये तो होना था किस बात का रोना है :2: नाशाद है खिल कर भी प्यासी है नदिया सागर से मिल कर भी :3: कुछ दर्द...
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मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

udaharan alankar

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अलंकार सलिला ४१ उदाहरण अलंकार * जब दृष्टांत उदाहरण में ज्यों, त्यों, जैसे, वैसे आदि शब्द जुड़ जाते हैं तब उदाहरण अलंकार ह...

muktika

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  एक मुक्तिका: * शब्द का अक्षरों से निवेदन है काव्य है कर्म दूरी के विलय का * महक अन्याय की है न्याय लाया तपिश हो खूब ज्यों हिस...

shodhlekh - kalpana ramani

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नवगीत परिसंवाद-२०१५ में पढ़ा गया शोध-पत्र कुमार रवीन्द्र के नवगीत संग्रह   ' पंख बिखरे रेत पर '  में   धूप की विभिन्न छविया...
1 टिप्पणी:

navgeet -

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एक रचना : लोग कहेंगे क्या? * लोग कहेंगे क्या? नहीं, इसकी कुछ परवाह * जो निचला उसको गलत कहते ऊपर बैठ आम आदमी की रहे रोक न्याय में...

navgeet

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एक रचना - * बंदर मामा  चीन्ह -चीन्ह कर  न्याय करे  * जो सियार वह भोगे दण्ड शेर हुआ है अति उद्दण्ड अपना & तेरा मनमानी ओह निष्पक्ष रचे पा...

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एक रचना अंधे पीसें * अंधे पीसें कुत्ते खांय * शीर्षासन कर सच को परखें आँख मूँद दुनिया को निरखें मनमानी व्याख्या-टीकाएँ सोते - सोते...
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

navgeet

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एक रचना  -  समय के संतूर पर   सरगम सुहानी  बज रही. आँख उठ-मिल-झुक अजाने आँख से मिल लज रही. * सुधि समंदर में समाई लहर सी शांत हो, उत्...

drushtant alankar -sanjiv

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अलंकार सलिला ४० दृष्टान्त अलंकार अलंकार दृष्टान्त को जानें, लें आनंद * * अलंकार दृष्टान्त को, जानें-लें...

नवगीत -

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एक रचना - ठेंगे पर कानून * मलिका - राजकुँवर कहते हैं ठेंगे पर कानून संसद ठप कर लोकतंत्र का हाय! कर रहे खून * जनगण - मन ने...
गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

laghukatha

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लघुकथा - गुलामी का अनुबंध * संसद में सरकार पर असहनशीलता और तानाशाही का आरोप लगाकर लगातार कार्यवाही ठप करनेवालों की सहनशीलता का नमूना...

चन्द माहिया : क़िस्त 24

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माहिया :  क़िस्त 24 :1: ये इश्क़,ये कूच-ए-दिल दिखने में आसाँ जीना ही बहुत मुश्किल :2: दिल क्या चाहे जानो मैं न बुरा मानू तुम...

navgeet

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एक रचना: चालीस चोर * चालीस चोर - अलीबाबा क्योें करते बंटाढार? * जनता माँगे दो हिसाब क्यों की तुमने मनमानी? घपले पकड़े गये  आ रही य...
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