दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.

बुधवार, 8 जुलाई 2015

एक प्रश्न : प्रेम, विवाह और सृजन

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एक प्रश्न: * लिखता नहीं हूँ,  लिखाता है कोई * वियोगी होगा पहला कवि  आह से उपजा होगा गान  * शब्द तो शोर हैं तमाशा हैं  भावना के सिं...

muktak

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मुक्तक: शब्द की सीमा कहाँ होती कभी, व्यर्थ शर्मा कर इन्हें मत रोकिये असीमित हैं भाव रस लय छंद भी, ह्रदय की मृदु भूमि में हँस बोइये ...
मंगलवार, 7 जुलाई 2015

गीत

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गीत बरबस गुनगुना दो तुम * चहचहाती मुखर गौरैया जागरण-संदेश दे जाए खटखटाकर द्वार की कुण्डी पवन-झोंका घर में घुस आए पलट दे घूँघट, उठें ...

व्यापम घोटाला

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व्यापम घोटाला का दुष्प्रभाव : व्यापम घोटाले को इतना छोटा रूप मत दीजिये। पिछले २० सालों में कितने फर्जी डॉक्टर तैयार हुए जो पोसे फेंककर ए...

मुक्तक

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मुक्तक: संजीव  * राम देव जी हों विभोर तो रचना-लाल तराशें शत-शत हो समृद्ध साहित्य कोष शारद-सुत पायें रचना-अमृत सुमन पद्म मधु रूद्र सल...
सोमवार, 6 जुलाई 2015

muktika:

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मुक्तिका: संजीव * खुलकर कहिये मन की बात सुने जमाना भले न तात * सघन तिमिर के बाद सदा उगती भोर विदा हो रात * धन-बल पा जो नम्र रहे ज...

kundalini

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कुण्डलिनी: संजीव  * हे माँ! हेमा है खबर, खाकर थोड़ी चोट  बच्ची हुई दिवंगता, थी इलाज में खोट  थी इलाज में खोट, यही अच्छे दिन आये व्ही आई पी ह...

muktika:

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मुक्तिका: संजीव * नित नयी आशा मुखर हो साल भर अब न नेता जी बजायें गाल भर मिले हिंदी को प्रमुखता शोध में तोड़कर अंग्रेजियत का जाल भर सने...

navgeet:

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नवगीत: संजीव  * प्राणहंता हैं  व्यवस्था के कदम  * परीक्षा पर परीक्षा जो ले रहे. खुद परीक्षा वे न कोई दे रहे. प्रश्नपत्रों का हुआ व्यापार है...

navgeet : sanjiv

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नवगीत: संजीव  * वैलेंटाइन  चक्रवात में  तिनका हुआ वसन्तोत्सव जब, घर की नींव खोखली होकर हिला रही दीवारें जब-तब. * हम-तुम देख रहे खिड़की के बज...

muktak:

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मुक्तक: * त्रासदी ही त्रासदी है इस सदी में लुप्त नेकी हो रही है क्यों बदी में नहीं पानी रहा बाकी आँख तक में रेत-कंकर रह गए...
शनिवार, 4 जुलाई 2015

kruti charcha:

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कृति चर्चा: अँधा हुआ समय का दर्पन : बोल रहा है सच कवि का मन   चर्चाकार: आचार्य संजीव * [कृति विवरण: अँधा हुआ समय का दर्पन, डॉ. राम...

एक ग़ज़ल : और कुछ कर या न कर...

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और कुछ कर या न कर ,इतना तो कर आदमी को आदमी  समझा  तो  कर उँगलियाँ जब भी उठा ,जिस पे उठा सामने इक आईना रख्खा  तो कर  आज तू है अर्श पर ...
1 टिप्पणी:

navgeet: sanjiv

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नवगीत: संजीव * भीड़ जुटाता सदा मदारी * तरह-तरह के बंदर पाले, धूर्त चतुर कुछ भोले-भाले. बात न माने जो वह भूखा- खाये कुलाटी मिले निव...
शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

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दोहे का रंग नीबू के संग : संजीव * वात-पित्त-कफ दोष का, नीबू करता अंत शक्ति बढ़ाता बदन की, सेवन करिये कंत * ए बी सी त्रय विट...
गुरुवार, 2 जुलाई 2015

munh par doha: sanjiv

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दोहा के रंग मुँह के संग संजीव * मुँह देखी जो बोलता, उसे न मानें मीत मुँह पर सच कहना 'सलिल', उत्तम जीवन-रीत * जो ...

navgeet: sanjiv

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नवगीत: संजीव * आँख की किरकिरी बने रहना * चैन तुम बिन? नहीं गवारा है. दर्द जो भी मिले मुझे सहना आँख की किरकिरी बने रहना * रात-द...

muktika

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मुक्तिका: संजीव * हाथ माटी में सनाया मैंने ये दिया तब ही बनाया मैंने खुद से खुद को न मिलाया मैंने या खुदा तुझको भुलाया मैंने...

rachna-prati rachna : fauji - sanjiv

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कविता-प्रतिकविता  * रामराज फ़ौज़दार 'फौजी'  जाने नहिं पीर न अधीरता को मान करे अइसी बे-पीर से लगन लगि अपनी  अपने ही चाव में, ...
बुधवार, 1 जुलाई 2015

jeebh par doha: sanjiv

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दोहा सलिला: दोहे का रंग जीभ के संग: संजीव * जीभ चलाने में तनिक, लगे न ईंधन मीत फिर भी न्यून चलाइये, सही यही है रीत * ज...
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