दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.

बुधवार, 24 जून 2015

chhand salila: pramanika aur panchchamar chhand -sanjiv

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छंद सलिला: प्रमाणिका और पञ्चचामर छंद संजीव * प्रमाणिका अन्य नाम: नगस्वरूपिणी प्रमाणिका एक अष्टाक्षरी छंद है. अष्टाक्षरी छंदों ...

muktika: sanjiv

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मुक्तिका : संजीव  * बीज बना करते हैं जो वे फसल न होते  अपने काटें बात अगर तो दखल न होते   * जो विराट कहते खुद को वामन हो जाते ...

Muktak: sanjiv

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मुक्तक: संजीव * रौशनी कब चराग करते हैं? वो न सीने में आग धरते हैं. तेल-बाती सदा जला करती- पूजकर पैर 'सलिल' तरते हैं. * मिले...

muktika: sanjiv

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एक प्रयोग-  मुक्तक मुक्तिका : संजीव * न हास है, न रास है  अनंत प्यास-त्रास है जड़ें न हैं जमीन में  गगन में न उजास है लक्...

shubhkamna geet: sanjiv

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शुभ कामना गीत: अनुश्री-सुमित परिणय १२-६-२०१५ बिलासपुर  संजीव  * मन जो मन से मिल गया  तो मन ने हँस कहा:  'मन तू मन से मिल ग...
शनिवार, 20 जून 2015

muktika: sanjiv

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अभिनव प्रयोग  दोहा मुक्तिका: संजीव  * इस दुनिया का सार है, माटी लकड़ी आग  चाहे  तू कह ले इसे, खेती बाड़ी साग  * तन-बरतन कर स...
1 टिप्पणी:

navgeet: sanjiv

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नवगीत: संजीव  * बाँस के कल्ले उगे फिर  स्वप्न नव पलता गया  पवन के सँग खेलता मन- मोगरा खिलता गया * जुही-जुनहाई मिलीं झट गले महका बाग़ रे! गुँ...
शुक्रवार, 19 जून 2015

muktika: salil

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मुक्तिका: संजीव  * मापनी:  १२१२ / ११२२ / १२१२ / २२  ल ला ल ला ल ल ला ला, ल ला ल ला ला ला महारौद्र जातीय सुखदा छंद  * मिलो गल...

navgeet: sanjiv

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नवगीत: संजीव  * पगड़ी हो  या हो दिल  न किसी का उछालिये  * हँसकर गले लगाइये  या हाथ मिलायें  तीरे-नज़र से दिल,  छुरे से प...
गुरुवार, 18 जून 2015

dohe: sanjiv

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दोहा के रंग बाल के संग  संजीव   * बाल-बाल जब भी बचें, कहें देव! आभार  बाल न बांका हो कभी कृपा करें सरकार  *  बाल खड़े हों जब कभ...

lekh: jal sankat aur naharen -sanjiv

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विशेष आलेख  जल संकट और नहरें  आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'' * अनिल, अनल, भू, नभ, सलिल, पंच तत्वमय देह  रखें समन्वय-संतु...
बुधवार, 17 जून 2015

dwipadi

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द्विपदी  संजीव * औरों की निगाहों से करूँ, खुद का आकलन ऐसा न दिन दिखाना कभी, ईश्वर मुझे .

navgeet: sanjiv

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नवगीत संजीव * चूल्हा, चक्की, आटा, दाल  लाते-दूर करें भूचाल  . जिसका जितना अधिक रसूख उसकी उतनी ज्यादा भूख छाँह नहीं, फल-फूल नहीं दे जो- जाए ...

navgeet: bela -sanjiv

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नवगीत: बेला संजीव * मगन मन महका  * प्रणय के अंकुर उगे फागुन लगे सावन. पवन संग पल्लव उड़े है कहाँ मनभावन? खिलीं कलियाँ मुस्कुरा भँवरे करे...

navgeet: bela -sanjiv

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नवगीत: संजीव * बेला  आहत-घायल  फिर भी खिलकर महक रही है मानो या मत मानो गुपचुप करती समर यही है * अँगना में बैठी बेला ले सतुआ खायें उमंग...

navgeet: bela -sanjiv

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नवगीत: संजीव * आइये! बेला बनें हम खुशबुएँ कुछ बाँट दें * अंकुरित हो जड़ जमायें रीति-नीति करें ग्रहण. पल्लवित हो प्रथाओं को समझ करि...

navgeet: bela -sanjiv

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नवगीत: बेला महका  संजीव  * जाने किस बेला में  बेला बहका था? ला, बे ला झट तोड़  मोह कह चहका था. * कमसिन कलियों की कुड़माई स...

kruti charcha:

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कृति चर्चा:  हम जंगल के अमलतास : नवाशा प्रवाही नवगीत संकलन चर्चाकार: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'  salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५...

गीत: राकेश खंडेलवाल

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एक गीत: राकेश खंडेलवाल आदरणीय संजीव सलिल की रचना ( अच्छे दिन आयेंगे सुनकर जी लिये नोट भी पायेंगे सुनकर जी लिये ) से प्रेरित * प्यास स...
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