दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

एक व्यंग्य कथा : साहित्यिक जुमला

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---- पण्ड्ति जी आँखें मूँद,बड़े मनोयोग से राम-कथा सुना रहे थे और भक्तजन बड़ी श्रद्धा से सुन रहे थे। सीता विवाह में धनुष-भंग का प्रसंग थ...
सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

navgeet: sanjiv

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नवगीत : संजीव  . खिल-खिलकर  गुल झरे  पलाशों के  . ऊषा के  रंग में नहाये से. संध्या को अंग से लगाये से. खिलखिलकर हँस पड़े अलावों से . लजा रहे...
1 टिप्पणी:

navgeet: sanjiv

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नवगीत : संजीव  . प्रिय फागुन की धूप  कबीरा  गाती सी. . अलसाई सी उठी अनमनी झुँझलाती. बिखरी अलकें निखरी पलकें शरमाती. पवन छेड़ता आँख दिखाती धम...

navgeet: sanjiv

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नवगीत : संजीव . हवाओं में घुल गये हैं बंद मादक छंद के. . भोर का मुखड़ा गुलाबी हो गया है. उषा का नखरा शराबी हो गया है. कूकती को...

navgeet: dr. issak ashq

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तीन नवगीत डॉ. इसाक ‘अश्क’ १. गमलों खिले गुलाब हर सिंगार फिर झरे कुहासों के. दिन जैसे मधु रंगों में- बोरे, गौर गुलाबी...
रविवार, 22 फ़रवरी 2015

lekh: sanjiv

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लेख: जन-जन की प्रिय रामकथा  संजीव . राम कथा चिरकाल से विविध अंचलों में कही-सुनी-लिखी-पढ़ी जाती रही है. भारत के अंचलों और देश के ब...

navgeet: sanjiv

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नवगीत: संजीव . शिव के मन मांहि बसी गौरा . भाँग भवानी कूट-छान के मिला दूध में हँस घोला शिव के मन मांहि बसी गौरा . प...

navgeet: sanjiv

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नवगीत संजीव . दहकते पलाश फिर पहाड़ों पर. . हुलस रहा फागुन बौराया है बौराया अमुआ इतराया है मदिराया महुआ खिल झाड़ों पर ...
शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

navgeet: sanjiv

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नवगीत संजीव . मैं नहीं नव गीत लिखता    उजासों की    हुलासों की    निवासों की    सुवासों की    खवासों की    मिदासों की ...

navgeet: संजीव

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नवगीत  :  संजीव * द्रोण में  पायस लिये पूनम बनी, ममता सनी आयी सुजाता, बुद्ध बन जाओ. . सिसकियाँ कब मौन होतीं? अश्रु कब रुकते? पर्वतों सी पीर...

navgeet: sanjiv

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नवगीत:  संजीव . चिन्तन करें, न चिंता करिए  . सघन कोहरा छटना ही है. आज न कल सच दिखना ही है. श्रम सूरज निष्ठा की आशा नव परिभाषा लिखना ही है. ...

navgeet: sanjiv

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नवगीत:  संजीव . सबके  अपने-अपने मानक  . ‘मैं’ ही सही शेष सब सुधरें. मेरे अवगुण गुण सम निखरें. ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ चमचे घेरें साँझ-सवेर...

navgeet: sanjiv

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नवगीत: संजीव * झोपड़-झुग्गी से बँगलेवाले हारे  . झाड़ू लेकर राजनीति की बात करें. संप्रदाय की द्वेष-नीति की मात करें. आश्वासन की मृग-मरीचिका ...
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