दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.

रविवार, 17 मई 2009

भजन सलिला: जनक अंगना में होती ज्योनार -स्व. शान्ति देवी

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: भजन सलिला : इस स्तम्भ के अर्न्तगत भारतीय लोक साहित्य अभिन्न अंग भक्तिपरक गीति रचनाएँ प्रस्तुत की जा रही हैं। इस भजन में राम विवाह के स...
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काव्य किरण: भोजपुरी दोहे, -सलिल

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: भोजपुरी दोहे : आचार्य संजीव 'सलिल' कइसन होखो कहानी, नहीं साँच को आँच. कंकर संकर सम पूजहिं, ठोकर खाइल कांच.. कतने घाटल के पियल, प...
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आरोग्य-आशा: अतिसार, -स्व. शान्ति देवी

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इस स्तम्भ के अंतर्गत पारंपरिक चिकित्सा-विधि के प्रचलित दिए जा रहे हैं। हमारे बुजुर्ग इन का प्रयोग कर रोगों से निजात पाते रहे हैं। आपको...
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कथा संध्या : लघु कथा : विरोधी -अरुण शर्मा

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अकबर ने बीरबल से कहा- 'क्याबात है बीरबल आजकल राज्य में हर ओर से भ्रष्टाचार की आवाजें सुनायी दे रहीं हैं? ...
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सूक्ति सलिला: शेक्सपिअर, प्रो. बी.पी.मिश्र'नियाज़' / सलिल

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विश्व वाणी हिन्दी के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार, शिक्षाविद तथा चिन्तक नियाज़ जी द्वारा इस स्तम्भ में विविध आंग्ल साहित्यकारों के साहित्य का ...
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काव्य किरण: चुटकी -अमरनाथ, लखनऊ

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नव काव्य विधा: चुटकी ...
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शनिवार, 16 मई 2009

काव्य किरण : गीत : -कृपाशंकर शर्मा 'अचूक', जयपुर

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अनजानी अनसुनी कहानी सुनते आये हैं। अरमानों के धागों से कुछ बुनते आये हैं... कान लगाकर सुना नहीं...
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हास्य हाइकु: मन्वन्तर

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काव्य किरण: कैसा है भारत जिसमें रोज होता महाभारत? पाक नापाक न घुसे कश्मीर में के दो लाक। कौन सा कोट न पहने आदमी? है पेटीकोट। ...
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नज्म: मनु बेतखल्लुस, दिल्ली

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वक्त बद-वक्त सही आसमां सख्त सही... न कोई ठौर-ठिकाना कहीं ज़माने में, खुशी की ज़िक्र तक बाकी नहीं फ़साने में, कब से पोशीदा लिए बैठा हूँ इन ज़...
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काव्य किरण: माँ का होना - पुष्पलता शर्मा

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माँ का होना शिलाजीत है... उसका दर्शन, उसकी वाणी, उसका इस दुनिया में होना, खोकर-पाना, पाकर-खोना- मन-आँगन में सपने ...
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स्वास्थ्य-साधना: अतिसार -स्व. शान्ति देवी/सलिल

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इस स्तम्भ के अंतर्गत पारंपरिक चिकित्सा-विधि के प्रचलित दिए जा रहे हैं। हमारे बुजुर्ग इन का प्रयोग कर रोगों से निजात पाते रहे हैं। आपको ऐसे न...
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सूक्ति सुषमा: शेक्सपिअर - प्रो बी. पी. मिश्र 'नियाज़'/सलिल

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विश्व वाणी हिन्दी के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार, शिक्षाविद तथा चिन्तक नियाज़ जी द्वारा इस स्तम्भ में विविध आंग्ल साहित्यकारों के साहित्य का...
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लेख: जीवनदात्री वनस्पति -प्रो. किरण श्रीवास्तव, रायपुर

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जैविक सत्ता के चारों ओर परिवेश की संज्ञा पर्यावरण है। विश्व के सब ओर परिव्याप्त महाकाश के अभिन्न अंग वायु, प्रकाश...
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काव्य किरण : चुटकी -अमरनाथ

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नव काव्य विधा: चुटकी समयाभाव के इस युग में बिन्दु में सिन्धु समाने का प्रयास सभी करते हैं। शहरे-लखनऊ के वरिष्ठ रचनाकार अभियंता अम...
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लघु कथा: डॉ. किशोर काबरा,अहमदाबाद -कोयले सा तन, कोयले सा मन

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रात की मटमैली रजाई अपने मुँह पर से दूर हटाकर ऊषा ने एक बात उछाली- 'ओ पापा! तन तुम्हारा कोयले से भी अधिक काला है।'...
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शुक्रवार, 15 मई 2009

नव गीत: -आचार्य संजीव 'सलिल'

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कहीं धूप क्यों?, कहीं छाँव क्यों??... सबमें तेरा अंश समाया। फ़िर क्यों भरमाती है काया? जब पाते तब खोते...
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ग़ज़ल: मनु बेतखल्लुस, दिल्ली

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हस्रतों की उनके आगे यूँ नुमाईश हो गई लब न हिल पाये निगाहों से गुजारिश हो गई उम्र भर चाहा किए तुझको खुदा से भी सिवा यूँ नहीं दिल में मेरे तेर...
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कविता: मशीनी जीवन -अवनीश तिवारी

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बैठते-उठते मशीनों के संग, मशीन बन गया हूँ मैं, नैतिक मूल्यों से दूर, निर्जीव, सजीव रह गया हूँ मैं। मस्तिष्क के पुर्जों का जंग, विचारों को कर...
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पुस्तक पंचायत: धर्मों की कतार में इस्लाम, लेखक: अरुण भोले, समीक्षक: अजित वडनेरकर

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इ स्लामी विचारधारा पर प्रायः हर सदी में सवालिया निशान लगता रहा है। ये सवाल वहां भी खड़े हुए जहां इस्लामी परचम मुहम्मद साहब...
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कविता: धात्री -शोभना चौरे

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वह कभी हिसाब नहीं माँगती तुम एक बीज डालते हो वह अनगिनत दाने देती है। बीज भी उसी का होता है और वह ही उसके लिए उर्वरक बनती है। अनेक कष्...
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