दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

सूक्ति कोष: प्रो. भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़'

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सूक्ति कोष प्रो. भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' विश्व वाणी हिन्दी के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार, शिक्षाविद तथा चिन्तक नियाज़ जी द्वारा ...

शब्द-यात्रा: चुनाव - अजित वडनेरकर

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चु नाव की ऋतु में विभिन्न प्रकार के वचन सुनने को मिलते हैं। इन वचनों में याचना, संदेह, आरोप, भय, संताप, प्रायश्चित, प्रतिज्ञा, प्रार्थना आदि...
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

सूक्ति कोष प्रो. भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' / 'सलिल'

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सूक्ति कोष प्रो. भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' विश्व वाणी हिन्दी के श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार, शिक्षाविद तथा चिन्तक नियाज़ जी द्वारा ...

लघुकथा : बुद्धिजीवी --लतीफ़ घोंघी

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मैंने एक मित्र से पूछा- 'सांप्रदायिक सद्भावना बढ़ाने में आपकी क्या भूमिका रहेगी?' वह बोले- 'क्या आप शाम को घर पर रहेंगे? मैं चा...

नमन नर्मदा : कृष्ण गोप, मंडला.

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माँ सुकुमारी वत्सल सलिला, उज्जवल मधुमय क्षीर नर्मदा। मध्य प्रान्त की जीवन रेखा, विस्तृत नेहिल नीर नर्मदा॥ उर्वर मिट्टी रच कछार में, सब्जी-फल...

एक शे'र : इन्तिज़ार - आचार्य संजीव 'सलिल'

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मिलन के पल तो कटे बाप के घर बेटी से। जवां बेवा सी घड़ी इन्तिज़ार की है 'सलिल'॥ -दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम -संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम

शब्द यात्रा : अजित वडनेरकर - पूरी-कचौडी

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दावतों में पूरियां न हों तो आनंद नहीं आता। भारतीय पूरियों की धूम पूरी दुनिया में है। रोज़ के खानपान में जो भूमिका रोटी दाल की हुआ करती है व...
गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

एक कुण्डली : आचार्य संजीव 'सलिल'

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भुला न पाता प्यार को, कभी कोई इंसान. पाकर-देकर प्यार सब जग बनता रस-खान जग बनता रस-खान, नेह-नर्मदा नाता. बन अपूर्ण से पूर्ण, नया संसार बसाता...

नव गीत

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नव गीत- आचार्य संजीव 'सलिल' * दिन भर मेहनत आँतें खाली, कैसे देखें सपना? * दाने खोज, खीझता चूहा। बुझा हुआ है चूल्हा। अरम...
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शब्द यात्रा : अजित वडनेरकर - निर्वाचन

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नि र्वाचन के लिए चुनाव शब्द बड़ा आम और लोकप्रिय है। बोलचाल में निर्वाचन की जगह चुनाव शब्द का ही इस्तेमाल होता है। संचार माध्यम भी निर्वाचन क...

लो हम वोट दे आये !

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लो हम वोट दे आये ! विवेक रंजन श्रीवास्तव लो हम वोट दे ही आये ! लाइन में लगकर .. ! दो दो लाइनों मे लगकर .. पोलिंग बूथ क्रमांक १०३ और १०३ क क...
बुधवार, 22 अप्रैल 2009

शब्द यात्रा - 'चुनाव' : अजित वडनेरकर

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लोकतंत्र में चुनाव के जरिये ही शासक चुना जाता है। पुराने दौर में राजा-महाराजा होते थे, वही शासक कहलाते थे। अब जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनत...

रचना आमंत्रण : नमामि मातु भारती

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साहित्य समाचार: भारतीय वांग्मय पीठ कोलकाता द्बारा नमामि मातु भारती २००९ हेतु रचना आमंत्रित संपादक श्री श्यामलाल उपाध्याय तथा अतिथि संप...

चुनाव चिंतन : रामेश्वर भइया 'रामू भइया'

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हिंदू मुस्लिम क्रिश्चियन, वणिक विप्र राजपूत। सबकी माता भारती, हम सब इसके पूत॥ सुनो बंधुओं मिल चलो, नव चुनाव की ओर। अंधियारों से छीन लो, अपनी...
मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

चंद अशआर : सलिल

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इन्तिज़ार कोशिशें मंजिलों की राह तकें। मंजिलों ने न इन्तिज़ार किया। ************************ बूढा बरगद कर रहा है इन्तिज़ार। गाँव का पनघट न क्य...

एक दोहा दो दुम का... सलिल

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लोकतंत्र के देखिये, अजब-अनोखे रंग। नेता-अफसर चूसते, खून आदमी तंग॥ जंग करते हैं नकली। माल खाते हैं असली॥ ...
सोमवार, 20 अप्रैल 2009

गीतिका

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सपने तो सपने होते हैं. बोलो, कब अपने होते हैं? हम यथार्थ की मरुस्थली में, फसलें यत्नों की बोते हैं. कभी किनारे पर डूबे तो, कभी उबर खाते गोते...

सामयिक रचना...

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शक्कर मंहगी होना पर... दोहा गजल आचार्य संजीव 'सलिल' शक्कर मंहगी हो रही, कडुवा हुआ चुनाव. क्या जाने आगे कहाँ, कितना रहे अभाव? नेता को...
1 टिप्पणी:
रविवार, 19 अप्रैल 2009

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चिटठा-लेखन तथा अंतर्जाल पत्रकारिता : द्विदिवसीय कार्यशाला 'व्यष्टि से समष्टि तक वही पहुंचे जो सर्व हितकारी हो'-- संजीव सलिल ...
शनिवार, 18 अप्रैल 2009

दिव्य नर्मदा संपादक श्री संजीव 'सलिल' 'वाग्विदान्वर सम्मान' से अलंकृत

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साहित्य समाचार: हिन्दी साहित्य सम्मलेन प्रयाग : शताब्दी वर्ष समारोह संपन्न * अयो...
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