tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post8812906427299649657..comments2024-03-02T15:49:04.728+05:30Comments on दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada : geet-prati geet : mahesh chandr dwivedi-acharya sanjiv verma 'salil' Divya Narmadahttp://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-40915437027586275282013-05-26T08:28:48.980+05:302013-05-26T08:28:48.980+05:30Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
सर्व -आदरणीय ...Mahesh Dewedy via yahoogroups.com <br /> <br />सर्व -आदरणीय दीप्ति जी, इंदिरा जी, शार्दूला जी , एवं अन्य सुह्रद्जन (अनेक सन्देश डिलीट हो गए हैं),<br /><br /> आप सब के द्वारा कविता पढ़ने एवं उस पर आशीष देने हेतु ह्रदय से आभारी हॊं. दीप्ति जी ने तो अपनी मीमांसा में कलम ही तोडकर रख दी है दीप्ति जी ने एक प्रश्न उठाया था, अतः स्पष्ट करता हूँ कि कविता के तीन छंदों में-<br />१. प्रथम का संदर्भ विश्व की उत्पत्ति-काल के आदि-पिण्ड से है,<br />२. द्वितीय का सन्दर्भ तिमिर-छिद्र अर्थात ब्लैक होल से है और <br />३. तृतीय का सन्दर्भ वृत्त के किसी भी विन्दु के अदि अथवा अंत होने से अर्थात वृत्त के अनादि - आनंत <br />होने से है.<br /><br />महेश चन्द्र द्विवेदीmcdewedy@gmail.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-59162467288546644242013-05-26T08:28:06.204+05:302013-05-26T08:28:06.204+05:30shar_j_n
आदरणीय महेश जी,
और तृतीय का संदर्भ...shar_j_n <br /><br />आदरणीय महेश जी,<br /> और तृतीय का संदर्भ <br /> वैज्ञानिक तथ्यों से सुसज्जित रचना। निम्न में कविता सुन्दरता से उभरी है :<br /><br /> "नश्वर विश्व का अणु-अणु रहता अनवरत-<br /> एक वृत्त-परिधि में घूमते रहने में विरत,<br /> वृत्त-परिधि का हर विंदु स्वयं में है आदि,<br /> और है स्वयं में ही एक अंत, स्वसीमित.<br /><br /><br /> लांघकर ऐसी सीमायें समस्त मैं, परिधि<br /> के उस पार की झंकार बनना चाहता हूं."<br /><br /> क्या हाल ही की चाँद पे मेटिओरिक शावर से प्रेरित हुए आप ये कविता लिखने के लिए?<br /><br /> सादर शार्दुला shardula naugazanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-55626766598513777692013-05-25T17:19:31.710+05:302013-05-25T17:19:31.710+05:30Kusum Vir via yahoogroups.com
अद्भुत रचना, आचार्...Kusum Vir via yahoogroups.com <br /><br />अद्भुत रचना, आचार्य जी !<br />कुसुम वीर kusum virnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-11184836593847665702013-05-24T17:00:43.579+05:302013-05-24T17:00:43.579+05:30आदरनीय द्विवेदी जी ,
जितनी आपकी कविता उत्तम उ...आदरनीय द्विवेदी जी ,<br /><br />जितनी आपकी कविता उत्तम उतनी ही उस पर दीप्ति जी की टिप्पणी उत्तम . पढकर बहुत आनंद आया . इस तरह की रचनाएँ और टिप्पणियां समूह का गौरव हैं .<br /><br />ढेर बधाई और सराहना के साथ,<br /><br />मुकेश Mukesh Srivastavanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-28082508549016226162013-05-24T17:00:19.931+05:302013-05-24T17:00:19.931+05:30प्रिय दीप्ति ,जो मैं लिखने में संकोच कर रही थी अच्...प्रिय दीप्ति ,जो मैं लिखने में संकोच कर रही थी अच्छा हुआ उसे तुमने विस्तार से लिख दिया मैं गार्गी के शास्त्रार्थ के बारे में भी लिखना चाह रही थी ,जिसमें पुरुष का दंभ दिखाया गया है या उसकी अज्ञानता ,कभी मन हो तो उस पर भी लिख देना | बहुत बहुत बधाई | दिद्दा indira pratapnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-54268429049603996762013-05-24T16:38:58.437+05:302013-05-24T16:38:58.437+05:30आदरणीय महेश जी,
आपकी इस कविता को पढ़कर सबसे पहल...<br /><br /> आदरणीय महेश जी,<br /><br /> आपकी इस कविता को पढ़कर सबसे पहले तो हम 'ॐ'शब्द में ही डूब गए! एक नन्हा सा पर अद्भुत ऊर्जा और चमत्कार से भरा तीन ध्वनियों (अ, उ,म्) का अक्षर! जो ईश्वर का वाचक है। छादोग्योपनिषद में कहा गया है- "ॐ इत्येतत् अक्षरः" - अर्थात् "ॐ अविनाशी, अव्यय एवं क्षरण रहित है। यह भी माना गया है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सदा ॐ की ध्वनि प्रवाहित होती रहती है। <br /> अत्यन्त पवित्र और शक्तिशाली ॐ शुद्धि करने वाला.....शक्ति देनेवाला होता है! इसलिए किसी मन्त्र को पढ़ते समय पहले ॐ उच्चारित किया जाता है! ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। हमने गुरुजनों से जाना कि ॐ में प्रयुक्त "अ" तो सृष्टि के जन्म की ओर इंगित करता है, वहीं "उ" उड़ने का अर्थ देता है, जिसका मतलब है "ऊर्जा" सम्पन्न होना। गायत्री मन्त्र का उच्चारण ॐ की ध्वनि से ही प्रारम्भ होता है! जैन दर्शन में भी ॐ के महत्व को दर्शाया गया है। कबीर ने भी ॐ के महत्व को स्वीकारते हुए लिखा है- <br /><br />ओ ओंकार आदि मैं जाना। <br />लिखि औ मेटें ताहि ना माना।।<br />ओ ओंकार लिखे जो कोई।<br />सोई लिखि मेटणा न होई।।<br /><br /> गुरुनानक ने लिखा है -<br /><br /> "ओम सतनाम कर्ता पुरुष निभौं निर्वेर अकालमूर्त" यानी ॐ सत्यनाम जपनेवाला पुरुष निर्भय, बैर-रहित एवं "अकाल-पुरुष के" सदृश हो जाता है।<br /><br /> अब, महेश जी, आप तो सीधा ओंकार ही बन जाना चाहते है तो सोचिए आपकी शक्ति और क्षमता कितनी अधिक हो जायेगी ...!<br /><br /> ऐसे आदिपिंड को जो चिरनिद्रा से जगा दे.............बहुत खूब<br /> उस प्रस्फुटन की ॐकार बनना चाहता हूं............बहुत खूब....George Lemaitre का 'महाविस्फोट' का सिद्धांत, लेकिन इससे पूर्व वेदों, पुराणों में घोषित प्रक्रिया<br /><br /> युगों तक जो बना रहता इक तिमिर-छिद्र..................उस बिंदु की ओर ही संकेत न- जिससे ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुयी थी जिसकी उर्जा अनंत थी...???<br /> अकस्मात बन जाता विस्फोटक बम सशक्त............धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक 'महाविस्फोट' से परिभाषित होती हैं<br /> क्रोधित शेषनाग सम फुफकारता ऊर्जा-पिंड<br /> स्वयं को विखंडित कर बना देता गृह-नक्षत्र....................... वेदों, उपनिषदों, पुराणों आदि में वर्णित थ्योरी उस तिमिर-छिद्र को कुम्भकर्णी नींद से जो जगा दे, मैं वह हुंकार बनना चाहता हूं......खूब<br /><br />लांघकर ऐसी सीमायें समस्त मैं, परिधि<br />के उस पार की झंकार बनना चाहता हूं.....खूब<br /><br /> आदि प्रलय की (का) ॐकार बनना चाहता हूं......चेतावनी परक अभिव्यक्ति महेश जी ! पढकर 'भय' लगा ...<br /><br /><br /><br /><br /><br /> पाश्चात्य वैज्ञानिको ने जो थ्योरी १९२० के आसपास बताई वह हमारे वेदों, उपनिषदों उनसे कई वर्ष पहले ही बताई जा चुकी थी ! उन्होंने उन्नीसवी. बीसवी सदी में बताया कि पृथ्वी egg-shaped है जबकि हमारे ऋषि मुनि तो पहले से ही इसे ब्रह्माण्ड (ब्रह्म +अण्ड) कहते रहे है |<br /><br /> इस विज्ञान परक रचना के लिए आप सराहना के पात्र हैं जो महत्वपूर्ण इतिहास <br /><br /><br /> को समोए हुए है ! साथ ही ॐकार बनने का आपका विचार और आने वाले समय में (hopefully) उस दिशा में प्रयाण - इन दोनों बातो से हम आस्तिक तो बेहद उत्फुल्ल हैं और प्रसन्नता से छलके जा रहे हैं !<br /><br /> ढेर साधुवाद स्वीकार कीजिए !<br /><br /> सादर, दीप्ति deepti guptanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-1656204081519303852013-05-23T18:05:55.946+05:302013-05-23T18:05:55.946+05:30Madhu Gupta via yahoogroups.com
जानता हूँ पुनः ओम...Madhu Gupta via yahoogroups.com<br /><br />जानता हूँ पुनः ओम् कार बनना चाहता हूँ "<br />संजीव जी इस गीत की गहरी सोच व काव्या त्मिकता को असीमित सराहना <br />नमन नमन <br />मधु Madhu Guptanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-4009499925293904772013-05-23T07:40:20.381+05:302013-05-23T07:40:20.381+05:30Umesh Upadhyay
ati bhaavpoorn....TYUmesh Upadhyay <br /><br />ati bhaavpoorn....TYUmesh Upadhyaynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-51022619355365023452013-05-23T07:39:49.098+05:302013-05-23T07:39:49.098+05:30guddo dadi:
ह्रदय में जो सुप्त, वह झंकार बनना चाह...guddo dadi:<br /><br />ह्रदय में जो सुप्त, वह झंकार बनना चाहता हूँ <br />जानता हूँ, हूँ पुनः ओंकार बनना चाहता हूँ … <br /><br />(काश सभी के मन सुचारू शुद्ध भावों की स्थापना हो )guddo dadinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-69709260162395938742013-05-22T10:33:24.606+05:302013-05-22T10:33:24.606+05:30Sandhya Singh
ati sudar shabd chayan ......utkri...Sandhya Singh <br /><br />ati sudar shabd chayan ......utkrisht bhav ke sath ..Sandhya Singhnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-70859666122456160742013-05-22T10:04:40.339+05:302013-05-22T10:04:40.339+05:30deepti gupta via yahoogroups.
बहुत खूब संजीव ज...deepti gupta via yahoogroups.<br /><br />बहुत खूब संजीव जी !<br /><br />ढेर सराहना के साथ,<br /> दीप्ति deepti guptanoreply@blogger.com