tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post5683152717628599321..comments2024-03-02T15:49:04.728+05:30Comments on दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada : लेख: राजनैतिक षड्यंत्र का शिकार हिंदी संजीव वर्मा 'सलिल'Divya Narmadahttp://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-39073774439294466952013-01-17T09:00:52.271+05:302013-01-17T09:00:52.271+05:30 Saurabh Pandey
//रामविलास शर्मा जी जिस वैचार... Saurabh Pandey<br /><br /> //रामविलास शर्मा जी जिस वैचारिक खेमे से हैं, उसकी ही बात करें- समझा जा सकता है किन्तु उस खेमे के बहार के लोगों का मौन या दोहरा आचरण कैसे समझा जाए.//<br /><br /> बात शतप्रतिशत सही है. डॉ.शर्मा के वैचारिक खेमे की बात पर कुछ कहने से मैं रह गया था. शैक्षिक जगत में इस तरह के विचारों की जड़ को तिल-तिल खाद और बूँद-बूँद पानी डाल कर सतत जिलाने का कार्य जिस तरह से पचास के दशक में हुआ वह कार्य सत्तर के दशक तक आते-आते एक महायज्ञ का रूप ले लिया. शिक्षा, शैक्षिक परिसर और पत्रकारिता का अर्थ ही लाल रंग-संपोषित मानसिकता हो गयी. विद्यालय ही नहीं विश्वविद्यालयों की श्रेणियाँ बनीं जहाँ एक विशेष वैचारिक साँचे में ढले समुदायों की ऐसी-ऐसी पौध खड़ी हुई, तथाकथित उच्च-शिक्षित लोगों का और विशेषकर मीडिया का ऐसा विशाल वर्ग खड़ा हुआ जो सोच, समझ और संप्रेषण के लिहाज से हिन्दी-हिन्दु-हिन्दुस्तान की अवधरणा से ऐसे बिदकता है मानों विगत का कोई हौव्वा या भूत उन्हें छू गया हो. <br /><br /> लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि इस षड्यंत्र को बूझने-जानने वाले समुदायों और वैसे विचारकों ने न अपनी उस तरह की एकजुटता दिखायी न उन लाल-रंगियों के खिलाफ़ कोई विन्दुवत् प्रहार ही किया जो सोच-समझ-संप्रेषण से भारतीय विचार से न सिर्फ़ विलग हैं, बल्कि हाइ-फाइ बातें करते हुए नये लोगों, विशेषकर युवाओं को, खूब आकर्षित भी करते हैं. आज स्थिति यह है कि हिन्दी-हिन्दु-हिन्दुस्तान की बातें करने वालों ने अपना मुँह खोला नहीं कि एक पूरा तंत्र उस खुले मुँह में तेज़ाबी पानी डालने के लिए समवेत रूप में हुआँ-हुआँ कर उठता है.<br /><br /> यह भी उतना ही सत्य है कि अमेरिका द्वारा अपनी सर्वग्राही-पैशाचिक व्यावसायिकता को संतुष्ट करने के फेर में हिन्दी अधिक प्रसार पाती दिख रही है. हिन्दी को अपनाना अमेरिका जैसे व्यावसायिक देशों की व्यावसायिक विवशता अधिक है और उस कारण हिन्दी का भला भले होता जाये. लेकिन हिन्दी-उत्थान का कार्य बैसाखियों या बाइ-प्रोडक्ट के लिहाज से नहीं हो सकता, बल्कि इस तरह के कार्य को जन-समुदाय की सोच की मुख्य धारा में लाना ही होगा. इसी क्रम मे ऐसे मंचों की आवश्यकता अपरिहार्य हो जाती है जहाँ हिन्दी के व्यापक उत्थान की सोच के मद्देनज़र ’सीखने-सिखाने’ की परिपाटी को बुलंद किया जा रहा है.<br /><br /> कहना न होगा कि अमेरिका के इस प्रयास के काट के रूप में धूर्त तंत्र अब ऐसे-ऐसे समुदाय खड़े कर या खड़े करवा रहा है जो आंचलिक भाषाओं के उन्नयन के नाम पर हिन्दी के खिलाफ़ विष-वमन कर रहे हैं. तर्क यह कि हिन्दी के कारण आंचलिक भाषाओं का विकास रुक गया. अब हिन्दी विरोध इन समुदायों का नया शगल है, चाहे ऐसे समुदाय अवधी के हित की बातें करते दीख रहे हैं या भोजपुरी या मैथिली या राजस्थानी की.<br /><br /> आंचालिक भाषाओं का विकास हो, खूब विकास हो, यह हिन्दी के हित में ही है. किन्तु स्वयं अंग्रेज़ी के रेस में खड़ी ’लंगड़ी’ हिन्दी किसी ज़मीनी भाषा का इतना अहित कैसे कर सकती है यह युवाओं को जितनी जल्दी समझ में आ जाय उतना श्रेयस्कर.<br /><br /> अस्तु<br />Saurabh Pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-89507620973911971252013-01-16T22:48:59.505+05:302013-01-16T22:48:59.505+05:30राजेश जी, सौरभ जी
आपका आभार शत-शत.
रामविलास शर्मा...राजेश जी, सौरभ जी <br />आपका आभार शत-शत.<br />रामविलास शर्मा जी जिस वैचारिक खेमे से हैं, उसकी ही बात करें- समझा जा सकता है किन्तु उस खेमे के बहार के लोगों का मौन या दोहरा आचरण कैसे समझा जाए. <br />नेहरु का उल्लेख मेरा उद्देश्य नहीं है. वह असत्य भी नहीं है. हिंदी को जगवानी बनना ही है. उसका पथ कोइ अवरुद्ध नहीं कर सकता. <br />अंतरजाल पर हिंदी को लाने का श्रेय भारत सरकार को है या अमेरिका की व्यापारिक जरूरतों को? भारत सरकार तो एक की बोर्ड बनाने का कानून भी नहीं बना सकी. यदि सभी कंपनियों के लिए अंगरेजी की तरह हिंदी का भी एक ही की बोर्ड बनाना अनिवार्य होता तो हमें रोमन में टाइप कर हिंदी लिखने की जरूरत नहीं होती. अस्तु... sanjiv salilnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-77850559810436846502013-01-16T22:36:16.737+05:302013-01-16T22:36:16.737+05:30 Saurabh Pandey
जिन कुचक्रों में फँसकर एक भाष... Saurabh Pandey<br /><br /> जिन कुचक्रों में फँसकर एक भाषा जो भारतीय स्वतंत्रता मुहिम के लम्बे अरसे के दौरान पूरे देश में संपर्क सूत्र के रूप में स्थापित हो चुकी थी, लगातार विवादित होती चली गयी, की आपने संक्षेप में ही सही बढिया विवेचना प्रस्तुत की है.<br /><br /> जिन विन्दुओं को यहाँ उठाया गया है वो तो सतह पर हैं, आदरणीय. इन विन्दुओं के पीछे या साथ-साथ कई-कई और कारण भी हैं जो इतने महीन हैं कि उनपर सामान्यतया ध्यान भी नहीं जाता. साथ ही, उन कारणों का रूप इतना व्यापक है कि उनके विरुद्ध बोलना एक बड़े वर्ग को झकझोर डालता है.<br /><br /> इसी में से एक कारण है मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. रामविलास शर्मा का एक विशेष दृष्टि लिए समस्त शोध-कार्य. डॉ.शर्मा द्वारा हिन्दी के सापेक्ष क्षेत्रीय भाषाओं को दोयम दर्ज़े का स्थान दे कर बोलियों के रूप में इंगित करना और हिन्दी के अजस्र श्रोत को काटना या हिन्दी के विरुद्ध उन्हें खड़ा करना ऐसा ही कुचक्र है जो आज समझ में आ रहा है. तकनीकी हिन्दी शन्दावलियों के नाम पर जो ग़ैर-ज़िम्मेदाराना कार्य हुआ है वह हिन्दी प्रयोग के प्रति उबकाई ही लाता है. यह हुआ प्रयास भले ही कितना हास्यास्पद लगे किन्तु मैं इसे एक षड्यंत्र का हिस्सा ही मानता हूँ.<br /><br /> नेहरु के ऊपर कहे आपके वाक्य इस लेख का हिस्सा न होते तो बेहतर होता. क्योंकि वे विचारों को विन्दुवत् रखने से भटकाते हैं. वैसे तथ्य गलत भी नहीं है. कोतवाल ग़यासुद्दीन ग़ाज़ी और फ़िरोज़ गंधी (गांधी नहीं) का किस्सा अब व्यापक हो चुका है. लेकिन इस आलेख का हिस्सा नहीं होना था.<br /><br /> सादर<br /><br /><br />Saurabh Pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-37725534563760729432013-01-16T22:35:51.308+05:302013-01-16T22:35:51.308+05:30rajesh kumari
आपने सही कहा आदरणीय सलिल जी ये...rajesh kumari<br /><br /> आपने सही कहा आदरणीय सलिल जी ये बहुत बड़ा राजनीतिक षड्यंत्र है हिंदी और संस्कृत भाषा को उखाड़ फेंकने का उसी नेहरु का परिवार देश को भी विलुप्त करने की दिशा में सक्रीय है पर धन्य है नेट का युग जिससे देश का युवा वर्ग एक जुट होकर इन सब का सामना कर रहा है हिंदी फिर से अपने पैर जमा रही है ,संसद में एक बर्तन भी खड़कता है तो पूरा हिन्दुस्तान जान जाता है बस अब इस मुहीम को तेज करने की जरूरत है हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलवाना है वक़्त तो लगेगा पर ये जरूर होगा ,बहुत बहुत बधाई आँखे खोल देने वाले आपके इस आलेख हेतु <br />rajesh kumarinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-50655189225133272112013-01-15T20:45:44.160+05:302013-01-15T20:45:44.160+05:30प्रदीप जी, अशोक जी, अलबेला जी, राजेश जी
हार्दिक ध...प्रदीप जी, अशोक जी, अलबेला जी, राजेश जी <br />हार्दिक धन्यवाद. <br />नेहरु की हिंदी विरोधी मानसिकता अहिन्दी भाषी प्रान्तों की संरचना और त्रिभाषा फोर्मुले के रूप में सामने आई थी, जो दक्षिण एके प्रान्तों में हिंदी विरोध का कारण बनी थी और बहुत बड़े पैमाने पर विध्वंस हुआ था. कृपया इतिहास देखें. स्वयं निराला जी ने नेहरु का विरोध किया था और उन पर व्यंगात्मक कविता भी लिखी थी. sanjiv salilnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-72056432129117440782013-01-15T20:41:02.536+05:302013-01-15T20:41:02.536+05:30sanjiv verma 'salil'
आपकी जानकारी के ... sanjiv verma 'salil'<br /><br /> आपकी जानकारी के लिए निवेदन है कि नेहरु की हिंदी विरोधी भाषा नीति ही त्रिभाषा फोर्मुले और भाषावार प्रान्तों के निर्माण का आधार बनी. एक समय अहिन्दी प्रदेशों में विध्वासक स्थिति बनी. स्वयं निराला जी ने नेहरु का विरोध किया. उस समय आप शायद न रहे हों, इतिहास से जानकारी मिल सकेगी.<br />sanjiv verma 'salil'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-8865820186502951822013-01-15T20:40:37.967+05:302013-01-15T20:40:37.967+05:30Rajesh Kumar Jha
आदरणीय आचार्य जी हिंदी बढ़नी...Rajesh Kumar Jha<br /><br /> आदरणीय आचार्य जी हिंदी बढ़नी चाहिए यहां तक मैं आपके साथ हूं परंतु नेहरू जी की मानसिकता या उनकी जड़ उखाड़ने से हिंदी का संबंध जोड़ नहीं पाया । यह आह्वान जहां एक ओर हमें आपके साथ चलने को प्रेरित करता है वहीं दूसरी ओर इसमें की गई टीका-टिप्पणी जिसका हिंदी से कोई लेना-देना नहीं, सच पूछें तो मुझे हजम नहीं हो रहा । हर भाषा बढ़नी चाहिए क्योंकि हर भाषा कहीं ना कहीं एक दूसरे पर निर्भर हैं अपनी इस सोच के साथ केवल आक्षेप वाले खंड पर अपना विरोध दर्ज करा रहा हूं । हिंदी किसी भी षडयंत्र का कभी शिकार नहीं रही यदि होती तो यही भारत सरकार यूनिकोड के लिए संसाधन मुहैया नहीं कराती, सादर<br />Rajesh Kumar Jhanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-44084796816515613972013-01-15T20:40:13.504+05:302013-01-15T20:40:13.504+05:30Ashok Kumar Raktale
हिंदी को बढ़ावा देने के लि...Ashok Kumar Raktale<br /><br /> हिंदी को बढ़ावा देने के लिए किया गया सुन्दर प्रयास.सच है कांग्रेस शासन में गांधी परिवार का ही बोलबाला रहा है. नेहरू जी के कृत्यों पर इसीकारण पर्दा पड़ा रहा. देश से षडयंत्र कर संस्कृत कि बिदाई करना चिंता का विषय है. जन जन में चेतना जगानी ही होगी. सारथक आलेख. आभार.<br />Ashok Kumar Raktalenoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-88051623640647855522013-01-15T20:39:40.953+05:302013-01-15T20:39:40.953+05:30Albela Khatri
जय हो जय हो
अत्यंत सार्थक औ...Albela Khatri<br /> जय हो जय हो<br /><br /> अत्यंत सार्थक और अभिभूत करनेवाला आलेख<br /> इस षड्यंत्र को असफल करने के लिए हिंदी भाषियों को सभी भारतीय भाषाओँ / बोलिओँ को न केवल गले लगाना चाहिए, उनमें लिखना-पढ़ना भी चाहिए और हिंदी के शब्द-कोष में उनके शब्द सम्मिलित किये जाने चाहिए<br /><br /> ___सादर बधाई Albela Khatrinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-19916278149890876852013-01-15T20:39:01.209+05:302013-01-15T20:39:01.209+05:30Rajesh Kumar Jha 2 hours ago
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...Rajesh Kumar Jha 2 hours ago<br /> Delete Comment<br /><br /> आदरणीय आचार्य जी हिंदी बढ़नी चाहिए यहां तक मैं आपके साथ हूं परंतु नेहरू जी की मानसिकता या उनकी जड़ उखाड़ने से हिंदी का संबंध जोड़ नहीं पाया । यह आह्वान जहां एक ओर हमें आपके साथ चलने को प्रेरित करता है वहीं दूसरी ओर इसमें की गई टीका-टिप्पणी जिसका हिंदी से कोई लेना-देना नहीं, सच पूछें तो मुझे हजम नहीं हो रहा । हर भाषा बढ़नी चाहिए क्योंकि हर भाषा कहीं ना कहीं एक दूसरे पर निर्भर हैं अपनी इस सोच के साथ केवल आक्षेप वाले खंड पर अपना विरोध दर्ज करा रहा हूं । हिंदी किसी भी षडयंत्र का कभी शिकार नहीं रही यदि होती तो यही भारत सरकार यूनिकोड के लिए संसाधन मुहैया नहीं कराती, सादर<br /><br />Comment by Ashok Kumar Raktale 21 hours ago<br /> Delete Comment<br /><br /> हिंदी को बढ़ावा देने के लिए किया गया सुन्दर प्रयास.सच है कांग्रेस शासन में गांधी परिवार का ही बोलबाला रहा है. नेहरू जी के कृत्यों पर इसीकारण पर्दा पड़ा रहा. देश से षडयंत्र कर संस्कृत कि बिदाई करना चिंता का विषय है. जन जन में चेतना जगानी ही होगी. सारथक आलेख. आभार.<br /><br />Comment by Albela Khatri 22 hours ago<br /> Delete Comment<br /><br /> जय हो जय हो<br /><br /> अत्यंत सार्थक और अभिभूत करने वाला आलेख<br /> इस षड्यंत्र को असफल करने के लिए हिंदी भाषियों को सभी भारतीय भाषाओँ / बोलिओँ को न केवल गले लगाना चाहिए, उनमें लिखना-पढ़ना भी चाहिए और हिंदी के शब्द-कोष में उनके शब्द सम्मिलित किये जाने चाहिए<br /><br /> ___सादर बधाई<br /><br />PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA<br /><br /> आदरणीय सलिल जीसादर अभिवादन <br /><br /> आपके इस लेख में प्रस्तुत विचारों को जानकार कितनी खुशी हो रही है शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता. मै भी यही सन्देश देता रहता हूँ. अपने इस मंच पर भी एक ही गेट रखा जाए. बाद में उन्हे उनके कमरों में सजा दिया जाये. <br /><br /> जिस व्यक्ति का जिक्र हिंदी विकास में बाधा का किया है. कौन सी जगह कोई अच्छा काम किये हैं वो. <br /><br /> बधाई <br />PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAnoreply@blogger.com